दुनिया के शक्तिशाली देशों का ‘क्लब’ डॉलर से दूर हो रहा है – अमरिकी विश्‍लेषिका का दावा

दुनिया के शक्तिशाली देशों का ‘क्लब’ डॉलर से दूर हो रहा है – अमरिकी विश्‍लेषिका का दावा

वॉशिंगटन – चीन और रशिया के साथ यूरोपिय देशों का समावेश होनेवाले ताकदवर देशों का ‘क्लब’ अमरिकी डॉलर्स से दूर हो रहा है और डॉलर का ‘प्रमुख अंतरराष्ट्रीय चलन’ होने के स्थान को खतरा बन रहा है, यह दावा अमरिकी विश्‍लेषिका एन कॉरिन ने किया है| पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हो रहे ‘पेट्रो-युआन’ अमरिकी डॉलर्स का वर्चस्व खतम हो रहा है, यह बयान करनेवाली ‘अर्ली वॉर्निंग सिस्टिम’ होने का इशारा कॉरिन ने दिया है|

 कॉरिन अमरिका के ‘इन्स्टिट्यूट फॉर एनॅलिसिस ऑफ ग्लोबल सिक्युरिटी’ इस अभ्यासगुट की सह-संचालिका है और अमरिकी सरकार की ‘एनर्जी सिक्युरिटी कौन्सिल’ के सलाहकार के तौर पर काम कर रही है| कुछ महीनें पहले ही उनकी लिखी ‘डि-डॉलरायझेशन ः द रिव्होल्ट अगेन्स्ट द डॉलर ऍण्ड द राईज ऑफ ए न्यू फायनान्शिअल वर्ल्ड ऑर्डर’ नाम की किताब प्रसिद्ध हुई है| इस किताब में उन्होंने अमरिकी डॉलर्स के वर्चस्व को पिछले दशक से मिल रही चुनौती, दुनिया के अलग अलग चलनों के वर्चस्व में हो रहे बदलाव जैसी बातों पर गौर किया है|

अमरिका के एक निजी समाचार चैनल के कार्यक्रम में कॉरिन ने डॉलर्स का वर्चस्व खतम होने की प्रक्रिया शुरू होने का दावा करके दुनिया के प्रमुख देश इसे अधिक गति देने के लिए उत्सुक होने की चेतावनी भी दी है| ‘आगे क्या होगा, इसका हमें अंदाजा नही| पर, वर्तमान की स्थिति कायम रहनेवाली नहीं| डॉलर से दूर जा रहे देशों का गुट बढ रहा है और इनमें ताकदवर देशों का भी समावेश है, इसे ध्यान में रखना होगा’, यह बात कॉरिन ने कही है|

इस बार उन्होंने अमरिका ने ईरान के साथ किए परमाणु समझौते से एकतरफा निर्णय करके बाहर होने के निर्णय की ओर ध्यान आकर्षित किया है| ‘यूरोपिय देशों को ईरान से व्यापार करना है| साथ ही उन्हों अमरिकी कानून के फंदे में फंसना नही है| अमरिका की मर्जी ना होनेवाले देशों के साथ व्यवहार करके फंसने की इच्छा कोई भी नही रखता| इस वजह से यूरोपिय देशों का झुकाव व्यवहारों में से डॉलर को दूर करने की ओर बढ रहा है’, इसका एसहास अमरिकी विश्‍लेषिका ने कराया है|

                   

चीन और रशिया के बढते सहयोग से तैयार हुए ‘पेट्रो युआन’ का जिक्र करते समय यह बात अमरिकी डॉलर को अंतरराष्ट्रीय स्तर से बाहर करने के लिए अहम बात साबित हो सकती है, यह दावा कॉरिन ने की| पर, इसके साथ ही सिर्फ ‘पेट्रो युआन’ अमरिकी डॉलर का वर्चस्व खतम करके उसका स्थान लेने के लिए सक्षम नही है, यह इशारा भी उन्होंने दिया|

पिछले कुछ वर्षों में रशिया और चीन ने अमरिकी डॉलर को व्यापार एवं व्यवहार से बाहर निकालने के लिए लगातार आक्रामक कदम उठाए है| चीन के युआन को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने दिया दर्जा और सोना एवं ईंधन जैसे प्रमुख सामान के व्यवहार के लिए बनाई गई स्वतंत्र व्यवस्था से चीन ने डॉलर का प्रभाव कम करना शुरू किया है| वही, रशिया ने सोने का भंडार बढाकर और विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की मात्रा नगण्य करके अपने इरादे स्पष्ट किए है|

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