चीन को रोकने के लिए अमरीका और ऑस्ट्रेलिया करेंगे सामरिक सहयोग में बढ़ोतरी – हायपरसोनिक, मिसाइल डिफेन्स समेत अंतरिक्ष क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने पर रहेगा ज़ोर

चीन को रोकने के लिए अमरीका और ऑस्ट्रेलिया करेंगे सामरिक सहयोग में बढ़ोतरी – हायपरसोनिक, मिसाइल डिफेन्स समेत अंतरिक्ष क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने पर रहेगा ज़ोर

वॉशिंग्टन – साउथ चायना सी पर चीन ने किए सभी दावे ठुकराकर उसकी साज़िशें नाकाम करने के लिए सामरिक सहयोग मज़बूत करने पर अमरीका और ऑस्ट्रेलिया की सहमति हुई। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता के लिए दोनों देशों के रक्षाबल मिलकर काम करेंगे और इसके लिए गोपनीय समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की जानकारी संयुक्त निवेदन से प्रदान की गई है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया का समावेश होनेवाले ‘फाईव आईज्‌’, ‘क्वाड’ और ‘टीआयपी’ गुटों के साथ चीन के विरोध में नया मोर्चा खोलने के संकेत भी दिए गए हैं। सामरिक सहयोग का दायरा बढ़ाते हुए हायपरसोनिक, मिसाइल डिफेन्स, इलेक्ट्रॉनिक, अंडर सी वॉरफेअर, अंतरिक्ष एवं सायबर क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने के लिए जोर देने का विश्वास अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ने किया है।

मंगलवार को हुई ‘ऑसमिन’ की बैठक के बाद अमरीका और ऑस्ट्रेलिया के विदेश एवं रक्षामंत्रियों ने संयुक्त वार्तापरिषद को संबोधित किया। इस दौरान, बीते कुछ वर्षों से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अस्थिरता लाने के लिए गतिविधियां जारी है यह बात कहकर ऐसी हरकतें दोनों देशों के लिए चिंता का विषय बनने का ज़िक्र किया गया है। इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा एवं नियमों पर आधारित विश्व व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ने अपने सहयोग का दायरा अधिक बढ़ाने का निर्णय लेने की जानकारी इस दौरान साझा की गई। इसी बीच साउथ चायना सी में ऑस्ट्रेलिया के साथ हाल ही में किया गया नौसेना का युद्धाभ्यास चीन के लिए स्पष्ट संदेश था, यह इशारा अमरिकी रक्षामंत्री मार्क एस्पर ने दिया। तभी अमरीका के साथ सामरिक सहयोग का निर्णय इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जारी घातक हरकतें रोकने के लिए ही किए जाने की बात कहकर ऑस्ट्रेलिया की रक्षामंत्री लिंडा रेनॉल्डस्‌ ने चीन को इशारा दिया।

अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ने जारी किए संयुक्त निवेदन का सारा रूख इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर की ओर ही रखा गया है। इसमें इंडो-पैसिफिक रिकवरी, इंडो-पैसिफिक सिक्युरिटी, रीजनल को-ऑर्डिनेशन, इंडो-पैसिफिक प्रॉस्परिटी एवं बायलेटरल डिफेन्स को-ऑपरेशन के मुद्दों का समावेश है। हाँगकाँग, तैवान एवं उइगरवंशियों पर हुए अत्याचारों का ज़िक्र करके चीन की वर्चस्ववादी नीति की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। इसमें कोरोना महामारी, सायबर हमले, 5जी प्रणाली, डिसइन्फॉर्मेशन कैम्पेन का ज़िक्र करने के साथ-साथ नाम लिए बगैर सीधे चीन को ही लक्ष्य किया गया है। उसी समय परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध से संबंधित नए समझौते में चीन को शामिल करने की अमरीका ने अपनाई भूमिका का ऑस्ट्रेलिया ने समर्थन किया है।

साउथ चायना सी पर चीन के सभी दावे हम ठुकरा रहे हैं, यह स्पष्ट ज़िक्र भी अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ने अपने संयुक्त निवेदन में किया। साथ ही इस मुद्दे पर वर्ष 2016 में अंतरराष्ट्रीय पंचाट ने किया गया निर्णय ही अंतिम और एकमात्र हल है, ऐसी स्पष्ट भूमिका इन दोनों देशों ने अपनाई है। साउथ चायना सी पर आसियान ने जाहीर किए गए निवेदन का स्पष्ट शब्दों में समर्थन करके वियतनाम की सराहना भी की गई। अमरीका और ऑस्ट्रेलिया द्वारा अपनाया गय यह ठोस रवैया चीन के सामने खड़ी चुनौतियों को अधिक बढ़ानेवाला साबित हो सकता है।

इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा के लिए सामरिक सहयोग का दायरा बढ़ाते हुए ‘प्रिन्सिपल्स ऑन अलायन्स डिफेन्स को-ऑपरेशन ऐण्ड फोर्स पोश्‍चर प्रायोरिटीज्‌’ नामक गोपनीय समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की जानकारी प्रदान की गई है। इस समझौते के अनुसार ‘फोर्स पोश्‍चर वर्किंग गुट’ का गठन किया गया है। यह गुट इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में दोनों देशों की रक्षा तैनाती का स्वरूप तय करेगा, यह बात कही गई है। ऑस्ट्रेलिया के डार्विन में स्थित रक्षा स्थल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में दोनों देशों के लष्करी सहयोग का केंद्र बनेगा और इस क्षेत्र में अमरीका ‘स्ट्रैटेजिक मिलिट्री फ्यूल रिज़र्व’ का निर्माण करेगी। लेकिन, साउथ चायना सी में स्वतंत्र तैनाती या इससे संबंधित मुहीम पर पुख्ता निर्णय लेने से अभी ऑस्ट्रेलिया दूर बनाए हुए है। अन्य मित्रदेशों के साथ चर्चा करके इससे संबंधित नीति तय करने के संकेत भी ऑस्ट्रेलिया ने दिए हैं।

चीन की कड़ी आलोचना करके इंडो-पैसिफिक में सहयोग बढ़ा रहे अमरीका और ऑस्ट्रेलिया के विरोध में चीन की कड़ी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है। साउथ चायना सी के साथ अन्य सभी मुद्दों पर चीन पर किए जा रहे सभी आरोप बेबुनियाद हैं। अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ने प्रसिद्ध किया हुआ निवेदन चीन के अंदरुनि कारोबार में दखलअंदाज़ी है। चीन पर दबाव बढ़ाने की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं होगी, इन शब्दों में चीन ने आलोचना की।

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