ब्रुसेल्स/बीजिंग – हाँगकाँग पर सुरक्षा क़ानून ज़बरदस्ती से थोंपने की कोशिशों के कारण चीन की अच्छीख़ासी घेराबंदी होने के संकेत मिल रहे हैं। ‘जी७‘ देशों के गुट ने इस मुद्दे पर चीन को फ़टकार लगाने पर अब युरोपीय महासंघ भी आक्रमक हुआ है। ‘हाँगकाँग यह हमारे लिए तीव्र चिंता का मुद्दा होकर, चीन ने यदि यह क़ानून लागू करने की कोशिश की, तो उसके बहुत ही गंभीर परिणाम भुगतने की तैयारी चीन रखें’ ऐसी कड़ी चेतावनी महासंघ ने चीन को दी। पिछले ही हफ़्ते युरोपियन संसद ने हाँगकाँग के मुद्दे पर चीन को आंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में घसीटने की धमकी दी थी।
शुक्रवार युरोपियन संसद ने हाँगकाँग के मुद्दे पर चीनविरोधी प्रस्ताव को मंज़ुरी दी थी। प्रस्ताव में, चीन यदि हाँगकाँग में नया सुरक्षा क़ानून लागू करता है, तो युरोपिय महासंघ चीन की सत्ताधारी हुक़ूमत को आंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जायेगा, ऐसा जताया गया था। चीन की हरक़तों को प्रत्युत्तर देने के लिए युरोप आर्थिक स्तर पर चीन पर दबाव लायें, ऐसी माँग भी प्रस्ताव में की गयी थी। इस पृष्ठभूमि पर, चीन के साथ हुई बैठक में युरोपीय महासंघ ने अपनाई आक्रमक भूमिका ग़ौरतलब साबित होती है।
सोमवार को युरोपीय महासंघ और चीन के प्रमुख नेताओं के बीच व्हिडिओ कॉन्फरन्स के ज़रिये चर्चा हुई। चर्चा में महासंघ की ओर से अध्यक्षा उर्सुला व्हॉन डेर लेयेन एवं चार्ल्स मिचेल और चीन की ओर से राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग एवं प्रधानमंत्री ली केकियांग सहभागी हुए थे। इस समय महासंघ के नेताओं ने कोरोना का संक्रमण और चीन के साथ व्यापार तथा निवेश के साथ हाँगकाँग के मुद्दे पर भी आग्रही भूमिका रखी।
‘हाँगकाँग का मुद्दा युरोपीय महासंघ के लिए तीव्र चिंता का मुद्दा है। इस मुद्दे पर महासंघ लगातार जी७ देशों के संपर्क में है। चीन का नेतृत्व हाँगकाँग में लागू लिये जानेवाले क़ानून पर पुनर्विचार करें। चीन ने हाँगकाँग में यह क़ानून लागू करने के लिए आगे कदम उठाये, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे‘, ऐसा महासंघ के नेताओं ने जताया। हॉंगकॉंग के साथ ही, कोरोना के मुद्दे पर चीन द्वारा जारी झूठा प्रचार और युरोपियन कंपनियों को चीन में आनेवालीं मुश्किलें इसपर भी महासंघ ने तीव्र नाराज़गी व्यक्त की।
इससे पहले, अमरीका ने शुरू किया व्यापारयुद्ध और ‘५जी‘ तंत्रज्ञान को लेकर शुरू की चीनविरोधी मुहिम; इन मुद्दों पर युरोपिय महासंघ ने चीन के साथ सहयोग की भूमिका अपनायी थी। लेकिन उघुरवंशियों पर होनेवाले अत्याचार और उसके बाद कोरोना तथा हाँगकाँग के मुद्दों पर युरोप–चीन संबंधों में बना तनाव बढ़ने की शुरुआत हुई है। चीन के ‘५जी‘ तंत्रज्ञान को लेकर युरोपियन देशों में होनेवाले मतभेद भी सामने आये होकर, उसमें युरोपियन कंपनियों के साथ चीन में होनेवाले ग़लत सुलूक़ यह मुद्दा भी तनाव और बढ़ा रहा है।
महासंघ के प्रमुख नेताओं ने, चीन के नेतृत्व के साथ हुई चर्चा में हाँगकाँग के मुद्दे पर अलापा हुआ धमकी का सुर और अन्य मुद्दों पर भी अपनाई आक्रमक भूमिका यही संकेत दे रहे हैं कि युरोप–चीन संबंध आनेवाले समय में अधिक ही बिगड़ते जानेवाले हैं। पिछले कुछ समय में चीन ने अमरीका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे अग्रसर देशों के विरोध में विभिन्न स्तरों पर संघर्ष शुरू किया है। ऐसे स्थिति में यदि युरोप भी चीन के विरोध में चला गया, तो आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन अच्छाख़ासा घेराबंदी में फ़ँसने की संभावना दिख रही है।
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