कौलालंपूर – अमरिकी डॉलर और अमरिका के आर्थिक वर्चस्व को चुनौती देनी है तो, इसके लिए इस्लामी देशों की स्वतंत्र क्रिप्टोकरन्सी की जरूरत है, यह बयान करके ईरान के राष्ट्राध्यक्ष हसन रोहानी ने ध्यान आकर्षित किया है| ऐसा होता है तो अंतरराष्ट्रीय चलन बने अमरिकी डॉलर का प्रभाव खतम करना मुमकिन होगा, यह विचार भी ईरानी राष्ट्राध्यक्ष ने रखा है| तभी, मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने काफी वर्ष पहले ही हमने इस्लामी चलन की मांग रखी थी, उसकी याद ताजा की|
मलेशिया की राजधानी कौलालंपूर में इस्लामी देशों की परिषद शुरू है| इस परिषद में शामिल हुए ईरान के राष्ट्राध्यक्ष ने अमरिका का आर्थिक एकाधिकार ठुकराने की जरूरत काफी आक्रामकता से पेश की| फिलहाल ईरान को अमरिका के कडे प्रतिबंधों का सामना करना पड रहा है और इस वजह से ईंधन के भंडार रखनेवाले ईरान की अर्थव्यवस्था के सामने काफी बडी चुनौतियां खडी हुई है| ऐसी स्थिति में अमरिकी डॉलर एवं आर्थिक वर्चस्व को झटका देने की ईरानी राष्ट्राध्यक्ष ने मांग रखना जायज समझा जा रहा है|
‘इससे पहले मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने ‘सोने का दिनार’ चलन के तौर पर इस्तेमाल करने का सुझाव रखा था| वर्तमान समय में नई तकनीक का इस्तेमाल करके इस्लामी देश अपने लिए क्रिप्टोकरन्सी का इस्तेमाल शुरू करें’, यह बात ईरान के राष्ट्राध्यक्ष ने रखी है| साथ ही इस क्रिप्टोकरन्सी का इस्तेमाल तकनीक, अनुसंधान और विकास करना संभव है, यह बात भी राष्ट्राध्यक्ष रोहानी ने रखी| उनके इस सुझाव पर मलेशिया के प्रधानमंत्री ने वहीं पर तुरंत ही समर्थन घोषित किया| हमनें कई वर्ष पहले ही इस्लामी देशों के स्वतंत्र चलन की मांग रखी थी| पर, तब के समय महासत्ताओं ने हमारे विरोध में कार्रवाई की थी, यह बयान महाथिर मोहम्मद ने किया|
पर, अब की बार मलेशिया इस्लामी देशों के स्वतंत्र चलन के लिए कोशिश करें| तुर्की और ईरान जैसे ताकतवर देश इसके लिए समर्थन दे रहे है, इसका लाभ उठाकर इस्लामी देशों का स्वतंत्र चलन विकसित करना संभव होगा, यह बात भी महाथिर मोहम्मद ने आगे कही| ईरान के राष्ट्राध्यक्ष ने स्वतंत्र चलन के साथ ही इस्लामी देशों ने स्वतंत्र नीधि खडा करें और ‘इस्लामिक प्रॉस्पेरिटी फंड’ भी जमा करें, यह मांग आग्रहता से उठाई है|
अलग शब्दों में कहे तो कौलालंपूर की परिषद में इस्लामधर्मियों की स्वतंत्र राजनीति और अर्थकारण का पुरस्कार किया जा रहा है और अगले दिनों में इसके काफी लंबे समय तक असर दिखाई देने की संभावना है| अमरिका और अन्य पश्चिमी देश इस्लामधर्मियों की एकता के विरोध में है और उनका आर्थिक विकास भी रोक रहे है, यह स्वर इस परिषद में लगाया गया है| ऐसा होते हुए भी इस परिषद में सौदी अरब एवं सौदी के खाडी क्षेत्र के प्रबल मित्रदेश इस परिषद से दूरी बनाकर होने की बात दिख रही है| इस वजह से फिलहाल तो इस परिषद का स्वरूप अमरिका और सौदीविरोधी देशों का संगठन होने का चित्र दिख रहा है| पर, अगले दौर में कौलालंपूर परिषद का प्रभाव बढने की कडी संभावना होने का विचार कुछ इस्लामी विश्लेषक रख रहे है|
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