जेनीवा – ‘डब्ल्यूएचओ’ यानी ‘वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनायझेशन’ की बैठक में पेश किए जा रहें चीनविरोधी प्रस्ताव को समर्थन देकर भारत ने इसपर सुस्पष्ट भूमिका अपनाई है। इसी हफ़्ते भारत ‘डब्ल्यूएचओ’ की मुख्य समिती का अध्यक्ष पद स्वीकार रहा है और इस पृष्ठभूमि पर भारत ने किया यह निर्णय ध्यान आकर्षित कर रहा है। भारत ने कोरोना के मुद्दे पर ज़ाहिर तौर पर चीनविरोधी भूमिका अपनाने का यह पहला ही अवसर है और इसके ज़रिए भारत ने चीन को उचित संदेश दिया हुआ दिख रहा है।
जेनीवा में सोमवार से ‘डब्ल्यूएचओ’ की निर्णय प्रक्रिया में अहम भूमिका निभानेवाली ‘वर्ल्ड हेल्थ असेंब्ली की बैठक शुरू हो रही है। इस बैठक में कोरोना वायरस की महामारी और ‘डब्ल्यूएचओ’ में सुधार का मुद्दा, ये प्रमुख अजेंड़ा रहेंगे, ऐसा कहा जा रहा है। जेनीवा में हो रही इस बैठक की पृष्ठभूमि पर, कोरोना की महामारी के मुद्दे पर चीन की घेराबंदी करने की गतिविधियाँ तेज़ हुईं हैं।
युरोपिय महासंघ और ऑस्ट्रेलिया ने कोरोना वायरस की महामारी और इसकी ज़ड़ों की गहराई से जाँच करने की माँग की है। इससे संबंधित प्रस्ताव भी तैयार किया गया है और इसका पूरा रूख चीन की दिशा मे हैं। यह प्रस्ताव रखने के निवेदन को युरोप और ऑस्ट्रेलिया समेत ६१ देशों ने खुला समर्थन घोषित किया है। इनमें भारत का भी समावेश होने से इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहें देशों की संख्या ६२ हुई है। डब्ल्यूएचओ के सदस्य होनेवाले १९४ देशों में से १२० से भी अधिक देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में होने के संकेत दिए हैं, ऐसा दावा भी कुछ प्रसारमाध्यमों ने किया है।
भारत ने कोरोना वायरस की महामारी के मुद्दे पर खुले आम चीन के विरोध में जाने का यह पहला ही अवसर है। मार्च महीने में ‘जी-२०’ की बैठक में भारत ने ‘डब्ल्यूएचओ’ के सुधार और पारदर्शिता के मुद्दे उपस्थित किए थे। लेकिन, कोरोना के मुद्दे पर कहीं भी चीन का ज़िक्र नहीं किया था। कुछ दिन पहले, भारत के एक वरिष्ठ मंत्री ने कोरोना वायरस का उद्गम नैसर्गिक नहीं हैं, यह बयान किया था। लेकिन, उस समय भी चीन को सीधा लक्ष्य करना टाल दिया था। लेकिन, ‘डब्ल्यूएचओ असेंब्ली’ की बैठक को अवसर बनाकर भारत ने खुले आम चीन पर निशाना लगाया है।
सोमवार के दिन ‘डब्ल्यूएचओ’ में चीन के विरोध में प्रस्ताव सामने आ रहा हैं और तभी कोरोना की महामारी का मुद्दा चीन के लिए और भी मुश्किलें बढ़ानेवाला साबित होने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं। चीन के नैशनल हेल्थ कमिशन के एक वरिष्ठ अफसर ने, कोरोना के शुरुआती दौर के नमूने नष्ट करने की बात स्वीकारी है। लिउ देन्गफेंग ने एक समाचार पत्र को दिये हुए इंटरव्यू के दौरान, इस विषाणु के शुरू के नमूने अवैध लैब के ज़रिये नष्ट करने की जानकारी साझा की। जैविक सुरक्षा के उद्देश्य से यह निर्णय किया गया था, यह दावा भी उन्होंने किया।
चीन के अफसर ने की हुई इस स्वीकृति से, अमरीका समेत अन्य देशों द्वारा चीन पर किए जा रहें आरोपों की पुष्टि होती दिख रही है। अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर आरोप रखते समय, चिनी यंत्रणाओं ने इस महामारी के शुरू के दौर में अमरीका और अन्य देशों के साथ आवश्यक सहयोग नहीं किया था, ऐसी आलोचना भी की थी। यदि चीन ने इस महामारी की जानकारी पहले ही प्रदान की होती, तो इस महामारी को वुहान में ही रोककर आगे की आफ़त से बचना संभव होता। लेकिन चीन ने यह होने नहीं दिया, ऐसी तीखी आलोचना अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प ने की थी। ट्रम्प की इस आलोचना को, अब अन्य देशों का भी समर्थन प्राप्त होता दिख रहा है।
इसी बीच, ‘वुहान ड़ायरी’ के ज़रिये कोरोना की महामारी के दौर में रही चीन की असलियत सामने लानेवाली लेखिका फँग फँग ने अब नयी खुफ़िया जानकारी की पोलखोल की है। चीन की यंत्रणा और अफ़सरों ने, वुहान में फैली बीमारी संक्रमित वर्ग की नहीं है, यह कहकर जनता को गुमराह किया था, यह बात ‘वुहान ड़ायरी’ की लेखिका ने कही हैं। असल में अपने बड़े भाई ने दिसंबर महीने में ही, यह वायरस खतरनाक और संक्रमित होनेवाला होने की बात कही थी, ऐसा फँग ने कहा है।
‘डब्ल्यूएचओ’ में रखा जा रहा प्रस्ताव और इसके साथ ही वरिष्ठ अफ़सर एवं इस लेखिका ने साझा की हुई जानकारी, इनके ज़रिये कोरोना के मुद्दे पर चीन के विरोध में अब शिकंजा और भी कसा जा रहा है, यही संकेत स्पष्ट तौर पर प्राप्त होने लगे हैं।
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