वॉशिंग्टन – चीन द्वारा साउथ चायना सी और ईस्ट चायना सी पर कब्ज़ा करने की ज़ोरदार कोशिशें जारी होने की चेतावनियाँ पिछले कुछ महीनों से लगातार दी जा रही हैं। चीन की इन गतिविधियों को रोकने के लिए अमरीका ने भी आक्रामक कदम उठाए हैं और इसमें, इन क्षेत्रों के प्रमुख देशों की रक्षा तैयारी बढ़ाने के लिए अपनाई नीति का भी समावेश है। इसके तहत अमरीका ने, जापान को १०५ प्रगत एफ-३५ लड़ाकू विमान प्रदान करने का एवं तैवान को दी हुई ‘पैट्रिऑट मिसाइल्स’ यंत्रणा प्रगत करने का निर्णय किया है। इस दौरान तैवान को मिसाइल यंत्रणा देने के निर्णय पर चीन से कड़ी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है और अमरीका एवं तैवान युद्ध के लिए उकसा रहे हैं, यह आरोप चीन के प्रसारमाध्यमों ने किया है।
कोरोना की महामारी के लिए चीन ही ज़िम्मेदार होने का आरोप करके, अमरीका ने चीन को गंभीर परीणाम भुगतने की चेतावनी दी थी। लेकिन अमरीका के धमकाने का हम पर असर नहीं हुआ है, यह दिखाने के लिए चीन ने, पिछले कुछ महीनों में साउथ चायना सी समेत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गतिविधियाँ बढ़ाई हैं। हाँगकाँग और तैवान के साथ पूरे साउथ चायना सी एवं ईस्ट चायना सी पर कब्ज़ा करने की वर्चस्ववादी महत्त्वाकांक्षा इसके पीछे है। एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में चीन लगातार अपनी नौसेना की ताकत का प्रदर्शन कर रहा है। वियतनाम, तैवान इन देशों के विरोध में आक्रामक भूमिका अपनानेवाली चिनी नौसेना ने, वियतनाम का जहाज़ भी डुबाया था।
चीन के लड़ाकू विमानों ने तैवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ करना जारी रखा है। साथ ही, ईस्ट चायना सी में चीन के विध्वंसक, पनडुब्बियाँ और गश्तीपोत जापान की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। इस पृष्ठभूमि पर, चीन की महत्त्वाकांक्षा पर लगाम कसने के लिए अमरीका ने पहल की होकर, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया, तैवान के साथ ही आग्नेय एशियाई देशों से सहायता ले कर रही है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमरीका की बढ़ती तैनाती और इस क्षेत्र के देशों को बड़ी मात्रा में प्रदान की जा रही रक्षा सामग्री अमरीका की व्यापक नीति का हिस्सा साबित होता है।
अमरीका की ‘डिफेन्स सिक्युरिटी को-ऑपरेशन एजन्सी’ ने गुरुवार के दिन जापान को १०५ ‘एफ-३५’ लड़ाकू विमान प्रदान करने के प्रस्ताव को मंज़ुरी दी। यह निर्णय अमरिकी संसद को सूचित किया गया है और यह समझौता २३ अरब डॉलर्स का है। इस समझौते के तहत जापान को ६३ ‘एफ-३५ ए’ और ४२ ‘एफ-३५ बी’ विमानों की आपूर्ति होगी। यह समझौता पूरा होने पर जापान की वायुसेना के बेड़े में कुल १४७ ‘एफ-३५’ लड़ाकू विमान कार्यरत होंगे, यह जानकारी सूत्रों ने साझा की। ‘एफ-३५’ विकसित करनेवाली अमरीका के अलावा, इन लड़ाकू विमानों का सबसे बड़ा बेड़ा रखनेवाला जापान यह पहला ही देश होगा।
फिलहाल विश्व में कार्यरत लड़ाकू विमानों में सबसे प्रगत और आधुनिक ‘फिफ्थ जनरेशन फायटर’ के तौर पर ‘एफ-३५’ की पहचान बनी है। चीन का ख़तरा रोकने के लिए अमरीका से इन प्रगत विमानों की ख़रीद करने के साथ ही, जापान ने स्वतंत्र रूप में ‘एफ-एक्स’ नाम से ‘सिक्स्थ जनरेशन स्टेल्थ फायटर जेट’ विकसित करने का निर्णय किया है। इसके लिए वर्तमान वर्ष में २६ करोड़ डॉलर्स की निधी आरक्षित रखी गयी है और सन २०३१ तक नया लड़ाकू विमान जापान के रक्षाबल में शामिल होगा, यह दावा जापानी सूत्रों ने किया है।
इसी बीच, पिछले कुछ वर्षों में तैवान के साथ सहयोग बढ़ाने पर जोर देनेवाले ट्रम्प प्रशासन ने, तैवान की ‘पैट्रिऑट मिसाइल्स’ की यंत्रणा का आधुनिकीकरण करने को मंज़ुरी दी है। इसके अनुसार तैवान के बेड़े में फिलहाल मौजूद ‘पीएसी-3’ यंत्रणा की मारक क्षमता और कालावधि बढ़ाने का निर्णय हुआ है। इसके लिए करीबन ६२ करोड़ डॉलर्स का समझौता हुआ है और आधुनिकीकरण किये हुए पैट्रिऑट मिसाईल्स, अगले तीन दशकों तक तैवान के रक्षाबलों में कार्यरत रहेंगे, यह जानकारी अमरिकी एवं तैवानी सूत्रों ने साझा की।
जून महीने के शुरू से ही तैवान अमरीका से हार्पून मिसाईल्स खरीद करने की तैयारी में जुटा होने की बात भी कही गई थी। इससे पहले अमरीका ने तैवान को टोर्पेडो प्रदान करने के लिए मंज़ुरी देने की ख़बर प्रकाशित हुई थी। तैवान की सुरक्षा के लिए अमरीका ने शुरू की हुई इन बढ़ती गतिविधियों से चीन की हुकूमत को बड़ा झटका लगा है और चीन के सरकारी प्रसारमाध्यमों ने धमकाना शुरू किया है। चीन के सरकारी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने, मिसाइल्स का यह नया समझौता यानी युद्ध को उकसाने का प्रकार होने की आलोचना की है। साथ ही, युद्ध शुरू हुआ तो चीन की सेना कुछ ही घंटों में तैवान पर कब्ज़ा करेगी, यह धमकी भी दी है।
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