ताइपे/विनियस/बीजिंग – ताइवान ने पूर्व युरोप के लिथुआनिया में स्वतंत्र राजनीतिक दफ्तर शुरू करने का ऐलान किया है। खास बात तो यह है कि, यह दफ्तर ‘द ताइवानीज् रिप्रेज़ंटेटिव ऑफिस’ नाम से ही शुरू किया जाएगा। ताइवान ने यूरोप में शुरू किए हुए अन्य राजनीतिक दफ्तर ‘ताइपे’ नाम से ही शुरू किए गए हैं। लेकिन, लिथुआनिया का दफ्तर ‘ताइवान’ के नाम से शुरू होनेवाला पहला दफ्तर होगा। ताइवान और लिथुआनिया के इस सहयोग की वजह से चीन की काफी बौखलाया हुआ है और लिथुआनिया को इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे, ऐसा इशारा चीन के सरकारी अखबार ने दिया है। अमरीका ने इस बात का स्वागत किया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताइवान की बढ़ रही भागीदारी को हमेशा के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा, ऐसी प्रतिक्रिया भी दर्ज़ की है।
ताइवान के विदेशमंत्री जोसेफ वु ने मंगलवार के दिन लिथुआनिया के साथ हुए समझौते की जानकारी साझा की। ‘लोकतंत्र, आज़ादी, मानव अधिकार जैसे वैश्विक मूल्यों पर लिथुआनिया का विश्वास है। लिथुआनिया ताइवान का समविचारी भागीदार है। लोकतांत्रिक एवं स्वतंत्र हुकूमतों की सुरक्षा के लिए दोनों देश हमेशा से आगे रहे हैं’, इन शब्दों में विदेशमंत्री वु ने लिथुआनिया के सहयोग का ऐलान किया। ताइवान की राष्ट्राध्यक्षा त्साई र्इंग-वेन ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से इसका समर्थन किया है और लिथुआनिया के प्रति आभार व्यक्त किया।
लिथुआनिया और ताइवान ने राजनीतिक दफ्तर के विषय में यह समझौता चीन के लिए बड़ा झटका है। बीते कुछ वर्षों से चीन ताइवान के खिलाफ अधिकाधिक आक्रामक भूमिका अपनाने लगा है। चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने यह इशारा दिया है कि, किसी भी स्थिति में ताइवान का विलय होगा। चीन के लष्करी अधिकारियों ने हमला करके ताइवान पर कब्ज़ा करने के इशारे खुलेआम देना शुरू किया है। इसके साथ ही दूसरी ओर ताइवान को स्वतंत्र पहचान दे रहे देशों को चीन की तरफ मोड़ने की कोशिश भी कम्युनिस्ट हुकूमत कर रही है।
लिथुआनिया की घटना से चीन की इन कोशिशों को बड़ा झटका लगता दिख रहा है। चीन के सरकारी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने इस मुद्दे पर लिथुआनिया को इशारा दिया है और यूरोपिय देशों के साथ जारी सहयोग पर भी इससे असर पड़ेगा, यह इशारा भी दिया है। कुछ दिन पहले लिथुआनिया ने ताइवान में राजनीतिक दफ्तर शुरू करने का ऐलान किया था। लिथुआनिया के शिष्टमंडल ने ताइवान की यात्रा करने की बात भी सामने आयी थी। इसी बीच चीन ने यूरोपिय देशों के साथ सहयोग स्थापित करने के लिए गठित किए गुट से निकलने का निर्णय भी लिथुआनिया ने किया था। कोरोना के मुद्दे पर भी लिथुआनिया ने ताइवान का समर्थन करने की भूमिका अपनाई थी। यूरोप के एक छोटे देश ने ताइवान के साथ ऐसे सहयोग बढ़ाने से चीन की हुकूमत को बड़ी मिर्च लगी है।
इससे चीन आगबबूला हो रहा है और तभी अमरीका ने लिथुआनिया के निर्णय का स्वागत किया है। ताइवान में अमरिकी दूतावास के तौर पर जाने जा रहे ‘अमरीकन इन्स्टिट्यूट ऑफ ताइवान’ ने इससे संबंधित निवेदन जारी किया है। ‘प्रमुख लोकतांत्रिक देश और प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले ताइवान से सहयोग बढ़ाने का अधिकार हरएक देश को है। इस मुद्दे पर अमरीका ड़टकर ताइवान के समर्थन में खड़ी है’, इन शब्दों में अमरीका ने अपनी प्रतिक्रिया दर्ज़ की है। लिथुआनिया ने राजनीतिक सहयोग के मुद्दे पर यह निर्णय करने से पहले यूरोप स्थित स्लोवाकिया द्वारा ताइवान को कोरोना वैक्सीन के १० हज़ार टीके प्रदान किए जाने की बात सामने आयी है।
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