हाँगकाँग के मुद्दे पर चीन ने तैवान को धमकाया

हाँगकाँग के मुद्दे पर चीन ने तैवान को धमकाया

बीजिंग  – ‘हाँगकाँग में अराजक मचानेवाले घटक और दंगाइयों को यदि तैवान ने पनाह दी, तो तैवान की जनता को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे’, ऐसी धमकी चीन की कम्युनिस्ट हुक़ूमत ने दी है। चीन के नये सुरक्षा क़ानून की पृष्ठभूमि पर, हाँगकाँग के आंदोलनकर्ताओं को आश्रय देने की योजना तैवान ने बनायी है। तैवान की इन गतिविधियों से चीन ग़ुस्सा हुआ उसकी नयी धमकी से स्पष्ट हो रहा है।

पिछले साल चीन की हुक़ूमत द्वारा हाँगकाँग पर थोंपे गये विधेयक के विरोध में बड़ा लोकतंत्रवादी आंदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन को आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर से दिए जानेवाले समर्थन में तैवान की राष्ट्राध्यक्षा ‘त्साई इंग-वेन’ अग्रसर थीं। तैवान की ओर से अधिकृत स्तर पर हाँगकाँग के आंदोलनकर्ताओं को समर्थन देनेवाला निवेदन भी जारी किया गया था। चीन की कम्युनिस्ट हुक़ूमत ने हाँगकाँग में नये सुरक्षा क़ानून का प्रस्ताव सामने लाने के बाद भी तैवान द्वारा उसकी कड़ी आलोचना की थी।

लेकिन केवल शाब्दिक समर्थन पर न रुकते हुए, तैवान ने हाँगकाँग के आंदोलनकर्ताओं की सहायता करने में पहल की है। चीन की हुक़ूमत ने हाँगकाँग में सुरक्षा क़ानून लागू करने के बाद, हाँगकाँग के नागरिक शहर से बड़े पैमाने पर बाहर निकलने की संभावना है। इन नागरिकों को पनाह देने की तैयारी तैवान ने दर्शायी है। हॉंगकॉंगवासियों के लिए तैवान सरकार ने एक स्वतंत्र विभाग स्थापन करने की गतिविधियाँ शुरू कीं होकर, यह विभाग १ जुलाई से कार्यरत होगा, ऐसी जानकारी सरकारी सूत्रों ने दी।

तैवान की इन गतिविधियों के कारण चीन की सत्ताधारी हुक़ूमत दुस्सा हुई देइख रही है। तैवान को गंभीर परिणामों की धमकी देते समय ही, हाँगकाँग तथा तैवान की स्वतंत्रता को समर्थन देनेवालीं बाह्य शक्तियों की साज़िश कभी भी क़ामयाब नहीं होगी, ऐसी चेतावनी भी चीन की कम्युनिस्ट हुक़ूमत ने दी। हाँगकाँग के मुद्दे पर तैवान जैसे देश चीन के साथ खुलेआम संघर्ष की भूमिका अपना रहे हैं कि तभी युरोपीय देशों ने भी चीन को नया झटका दिया है।

शुक्रवार को युरोपियन संसद ने भी हाँगकाँग के मुद्दे पर चीनविरोशी प्रस्ताव को मंज़ुरी दी। इस प्रस्ताव के अनुसार, चीन यदि हाँगकाँग में नया सुरक्षा क़ानून लागू करेगा, तो युरोपिय महासंघ चीन की सत्ताधारी हुक़ूमत पर आंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मुक़दमा दायर करेगा। इस प्रस्ताव में युरोप की संसद ने, चीन द्वारा जारी मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में भी नाराज़गी व्यक्त की। चीन की इन हरक़तों को प्रत्युत्तर देने के लिए, युरोप आर्थिक स्तर पर चीन पर दबाव डालें, ऐसी माँग भी प्रस्ताव में की गयी है।

तैवान की गतिविधियाँ और उसके बाद युरोपीय संसद ने मंज़ूर किया प्रस्ताव यही दर्शा रहे हैं कि हाँगकाँग के मुद्दे पर आंतर्राष्ट्रीय समुदाय चीन के विरोध में अधिक आक्रमक हो रहा है। पिछले ही हफ़्ते आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर का प्रमुख देशों का गुट होनेवाले ‘जी७’ ने, हाँगकाँग क़ानून पर चीन पुनर्विचार करें, ऐसी आग्रही माँग करनेवाला निवेदन जारी किया था। उससे पहले, चीन की कम्युनिस्ट हुक़ूमत द्वारा हाँगकाँग पर थोंपा जानेवाला नया राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून मानवाधिकारों की हत्या करानेवाला होकर, हाँगकाँग की जनता चे मूलभूत अधिकार और आज़ादी छिननेवाला है, ऐसी तीख़ी आलोचना दुनिया के प्रमुख स्वयंसेवी संगठनों ने की थी।

हाँगकाँग यह एक ज़माने में ब्रिटन का उपनिवेश था और चीन के साथ हुए समझौते के अनुसार, सन १९९७ में हाँगकाँग को चीन के हवाले सौंपा गया था। लेकिन चीन के कब्ज़े में देते समय, ब्रिटिश सरकार ने चीन के साथ कुछ महत्त्वपूर्ण समझौते किये थे। इन समझौतों के अनुसार, हाँगकाँग का प्रशासन चीन की ‘वन कंट्री टू सिस्टीम्स’, इस नीति के अनुसार चलाया जानेवाला था। उसीके साथ, ५० सालों तक हाँगकाँग की स्वायत्तता अबाधित रहेगी, इसका ख़याल भी समझौते के अनुसार लिया गया था। लेकिन पिछले कुछ सालों में चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट हुक़ूमत द्वारा हाँगकाँग की प्रशासन व्यवस्था बदलने की गतिविधियाँ शुरू हैं।

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