न्यूयॉर्क – चीन ने ईरान में अगले २५ वर्षों में लगभग ४०० अरब डॉलर्स का निवेश करने की तैयारी की है। इसके तहत, चीन ईरान के ईंधन क्षेत्र के साथ ही सुरक्षा के लिए भी सहयोग करेगा, ऐसा बताया जा रहा है। इस मामले में सहयोग को लेकर दोनों देशों में एकमत हुआ होने की ख़बरें पश्चिमी अख़बारों में प्रकाशित हुईं हैं। ईरान की आर्थिक तथा राजनीतिक घेराबंदी करने के लिए आक्रमक गतिविधियाँ करनेवाली अमरीका को, चीन ईरान के साथ यह सहयोग करके मात देने की कोशिश कर रहा है, यह बात इससे स्पष्ट हुई है। इस निवेश के बदले में चीन को ईरान से रियायती दर में ईंधन की आपूर्ति की जायेगी। चीन और ईरान के बीच का यह सहयोग, ईरान की आर्थिक एवं राजनीतिक घेराबंदी करनेवाली अमरीका के लिए चुनौती साबित होती है। इस कारण ट्रम्प प्रशासन द्वारा इसके विरोध में तीव्र प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
चीन और ईरान के अधिकारियों के बीच संपन्न हुए १८ पन्ने के प्रस्तावित सहयोग समझौते की जानकारी अमरिकी अख़बार ने उजागर की है। उसके अनुसार चीन ईरान की ईंधन, बँकिंग, टेलिकम्युनिकेशन, रेल्वे, बंदरगाह तथा अन्य कुछ अहम परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर निवेश करनेवाला है। लेकिन इससे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चीन ईरान प्रगत शस्त्रास्त्र, लष्करी प्रशिक्षण तथा संवेदनशील गोपनीय जानकारी की आपूर्ति करनेवाला है। इसकी गंभीर दखल इस्रायली तथा आखाती देश के माध्यमों ने ली है। अपनी सुरक्षा को ईरान से ख़तरे की संभावना होने के दावें करनेवाले इस्रायल तथा ख़ाड़ीक्षेत्र के देशों से भी इस सहयोग समझौते पर प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
सन २०१६ में चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग के ईरान दौरे में इस पच्चीस सालों के सहयोग समझौते पर चर्चा हुई थी। पिछले महीने में ईरान के राष्ट्राध्यक्ष हसन रोहानी ने चीन के इस प्रस्ताव का समर्थन किया होने की घोषणा विदेशमंत्री जावेद झरीफ ने की थी। वहीं, ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्ला खामेनी भी इस समझौते को हरी झंड़ी दिखा रहे हैं। इससे अमरीका ने ईरान पर थोंपे हुए आर्थिक प्रतिबंध प्रभावहीन साबित होंगे, ऐसे दावें किये जा रहे हैं। ईरान के साथ होनेवाले इस मज़बूत सहयोग के बलबूते पर, चीन ख़ाड़ी क्षेत्र में अपना प्रभाव अधिक ही बढ़ा सकेगा। साथ ही, इस समझौते के तहत, ईरान पर्शियन खाड़ी में स्थित अपना द्वीप चीन को बहाल करनेवाला होने के दावे आखाती माध्यम कर रहे हैं।
अपना परमाणुकार्यक्रम रोकने से इन्कार करनेवाले ईरान के विरोध में अमरीका के ट्रम्प प्रशासन ने बहुत ही जहाल भूमिका अपनाई है। इसके अनुसार विभिन्न मोरचों पर ईरान की घेराबंदी की जा रही है। इसके परिणाम सामने आ रहे होकर, ईरान की अर्थव्यवस्था ढ़हने की कग़ार पर पहुँची है। ऐसी स्थिति में, चीन के प्रचंड निवेश का आधार ईरान को मिल सकता है। लेकिन चीन का निवेश यानी कर्ज़े का फ़ंदा होने का अनुभव इससे पहले कई देशों को हुआ है। लेकिन इसके बावजूद भी, ईरान के सामने फिलहाल चीन के निवेश का स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन इस सहयोग की बहुत बड़ी क़ीमत चुकाने के लिए, अमरीका तथा पश्चिमी देश ईरान के साथ चीन को भी मजबूर करेंगे, ऐसे संकेत मिल रहे हैं।
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