‘साउथ चायना सी’ के मुद्दे पर यूरोप ने चीन के खिलाफ़ अपनाई आक्रामक भूमिका – जर्मनी, फ्रान्स और ब्रिटेन ने दिया संयुक्त राष्ट्र संगठन को निवेदन

‘साउथ चायना सी’ के मुद्दे पर यूरोप ने चीन के खिलाफ़ अपनाई आक्रामक भूमिका – जर्मनी, फ्रान्स और ब्रिटेन ने दिया संयुक्त राष्ट्र संगठन को निवेदन

लंदन/बीजिंग – ‘साऊथ चायना सी’ के मुद्दे पर चीन जता रहा कथित ऐतिहासिक अधिकार अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में नहीं है और समुद्री क्षेत्र में यातायात की स्वतंत्रता को अहमियत है, इन शब्दों में यूरोप ने चीन को कड़े बोल सुनाए हैं। यूरोप के तीन प्रमुख ‘बिग थ्री’ देश यानी जर्मनी, फ्रान्स और ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र संगठन को दिए निवेदन में यह भूमिका अपनाई है और इन देशों ने एकसाथ चीन को इशारा देने का यह पहला अवसर है। इस निवेदन की वजह से यूरोपिय देशों की चीन के खिलाफ़ तीव्र नाराज़गी होने की बात फिरसे सामने आयी है। दोनों पक्षों में बढ़ रही दरार भी इसके साथ स्पष्ट तौर पर सामने आयी है। व्यापारयुद्ध और कोरोना समेत अन्य मुद्दों पर अमरीका ने चीन के खिलाफ़ आक्रामक संघर्ष शुरू किया है और तभी यूरोप ने चीन को यह नया झटका दिया है।

चीन के साथ संबंधों के मुद्दे पर अमरीका और यूरोप के बीच मतभेद होने की बात लगातार सामने आती थी। लेकिन, कोरोना की महामारी के पृष्ठभूमि पर स्थिति धीरे धीरे बदलने लगी है और यूरोप में भी चीन के खिलाफ़ असंतोष अधिक तीव्र हो रहा है। कोरोना की महामारी का चीन की हुकूमत ने किया हुआ नियंत्रण और साथ ही हाँगकाँग एवं उइगरवंशियों से संबंधित किए गए निर्णय यूरोप की नाराज़गी का प्रमुख कारण बने हैं। चीन के संबंधों के मुद्दे पर यूरोपिय महासंघ ने दिए हुए इशारे एवं निवेदन भी चीन ने ठुकराए होने की बात दिखाई पड़ी है। इस पृष्ठभूमि पर यूरोप के ‘बिग थ्री’ देशों ने साउथ चायना सी के मुद्दे पर चीन को लगाया तमाचा ध्यान आकर्षित कर रहा है।

अपने निवेदन में यूरोपिय देशों ने वर्ष १९८२ से ‘यूएन कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी’ का ज़िक्र किया है। संयुक्त राष्ट्र संगठन के इस दायरे में किए निर्णयों का सम्मान करना आवश्‍यक है, यह इशारा भी दिया गया है। अमरीका ने लगातार सामने रखे ‘फ्रीड़म ऑफ नेविगेशन’ के मुद्दे पर भी इस निवेदन में जोर दिया गया है। यह तीनों देश वर्ष १९८२ से ‘यूएन क्न्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी’ का हिस्सा होने से इनके इस निवेदन को अहमियत प्राप्त हुई है। यूरोपिय देशों ने इससे पहले भी साउथ चायना सी के मुद्दे पर अपनी भूमिका रखी है, फिर भी चीन को सीधे शब्दों में तमाचा जड़ने का यह पहला अवसर है।

बीते महीने में अमरीका ने साउथ चायना सी के मुद्दे पर अपनी नीति का ऐलान करके चीन के कोई भी दावे मंजूर नहीं किए जाएंगे, यह भूमिका स्पष्ट शब्दों में रखी थी। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी अमरीका की भूमिका ही दोहराई थी। चीन ने इन देशों को प्रत्युत्तर देने के साथ साउथ चायना सी अपनी संप्रभुता का क्षेत्र होने का दावा किया था। यूरोपिय देशों को भी चीन से इसी तरह का जवाब प्राप्त होने की संभावना है। फिर भी यूरोप ने व्यक्त की हुई नाराज़गी यानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के लिए जोरदार झटका साबित होती है, यह दावा विश्‍लेषकों ने किया है।

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