बीजिंग/लंदन – चीन की शासक कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने विश्व पर आर्थिक वर्चस्व बनाए रखने के लिए बनाई योजना असफल हुई है, ऐसा दावा ब्रिटेन के प्रमुख अखबार ने किया है। कोरोना के बाद चीन की अर्थव्यवस्था संभलने की संभावना फिलहाल तो खत्म हुई है और विदेशी कंपनियां एवं प्रमुख निवेशक तेज़ी से चीन से बाहर निकल रहे हैं, इसपर ‘द टेलिग्राफ’ नामक अखबार ने ध्यान आकर्षित किया है। राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने चीन की अर्थव्यवस्था के बारे में किए अधिकांश निर्णय असफल हुए हैं और विश्व के शीर्ष देश चीन से होने वाले खतरे से बचने के लिए कदम उठा रहे हैं, ऐसा ब्रिटीश अखबार ने कहा है।
कोरोना के प्रतिबंध हटाने के बाद चीन की अर्थव्यवस्था उछाल लेगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था संभलने की प्रक्रिया शुरू होगी, ऐसा अनुमान कई वित्त संस्था और आर्थिक विशेषज्ञों ने जताया था। लेकिन, वास्तव में चीन से सामने आ रहे आंकड़े उम्मीद तोड़ रहे हैं। पिछले महीने में चीन के उत्पाद क्षेत्र के साथ खुदरा, निवेश और गृह निर्माण क्षेत्र की गिरावट होने की जानकारी सामने आयी थी। इसके बाद चीन में बेरोज़गार लोगों की संख्या भी काफी बढ़ने की बात स्पष्ट हुई थी। मई महीने में भी इसकी बढ़ोतरी जारी है और औद्योगिक उत्पाद और खुदरा बिक्री की बड़ी गिरावट हुई है।
अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों की गिरावट जारी होने के बीच में ही पश्चिमी देशों के साथ कंपनियां और निवेशकों ने चीन से धीरे धीरे दूर होना शुरू किया है। चीन के शेअर बाज़ारों से कई विदेश कंपनियों ने अपना पंजीकरण रद किया है और बड़ी कंपनियों ने अपने दफ्तर वहां से भारत, आग्नेय एशिया और अन्य देशों में लगाना शुरू किया हैं। रिअल इस्टेट और प्रौद्योगिकी क्षत्र पर कार्रवाई करने से यह प्रमुख क्षेत्र आर्थिक संकट का मुकाबला कर रहे हैं।
साथ ही दूसरी ओर अमरीका समेत यूरोपिय देश और मित्र देशों ने चीन को लेकर अधिक से अधिक सावधानी बरतना शुरू किया है। यूरोपिय महासंघ के साथ कई देशों ने चीन का ज़िक्र करते हुए उसे खतरा कहना शुरू किया है। अमरीका के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन के खिलआफ शुरू किए व्यापार युद्ध की तीव्रता कम हुई है, फिर भी चीनी कंपनियों के विरोध में शुरू अमरीका की कार्रवाई अभी बंद नहीं हुई है। उल्टा चीनी कंपनियों को देश के बाहर खदेड़ने के लिए अधिक कानून किए जा रहे हैं।
किसी समय चीन के संबंधों को सूवर्णयूग बताते रहे पश्चिमी देशों की नीति में हुए इस बदलाव के पीछे चीन की कम्युनिस्ट और शी जिनपिंग की विचार धारा एवं गलत निर्णय ज़िम्मेदार है, ऐसा ‘द टेलिग्राफ’ के लेख में कहा गया है।
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