वॉशिंग्टन – अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने मित्रदेशों को ‘मिलिटरी ड्रोन्स’ निर्यात करने को अनुमोदन देनेवाली महत्वपूर्ण निति को मंजूरी दी है। इस से नाटो देशों के साथ सौदी अरेबिया, खाडी क्षेत्र स्थित मित्रदेश, जापान, दक्षिण कोरिआ, भारत, सिंगापूर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को ‘किलर ड्रोन्स’ की निर्यात का अमरिकी हथियार कंपनियों का रास्ता खुला हो चुका है। एशिया-पॅसिफिक, यूरोप और खाडी देशों में बढते तनाव के चलते यह फैसला ध्यान खींचनेवाला साबित हो रहा है।
गुरुवार को राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ‘नॅशनल सिक्युरिटी प्रेसिडेन्शिअल मेमोरेंडम’ पर हस्ताक्षर किये गये। इस अध्यादेश के अनुसार, नए ‘कन्व्हेंशनल आर्म्स ट्रान्सफर पॉलिसी’ को मंजूरी दे दी गयी है। राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प द्वारा घोषित हुए राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में रहे प्रावधानों के अनुसार यह नीति तैयार की गयी है। इस में अमरिकी कंपनियों से विदेश में निर्यात होनेवाले हथियारों के बारे में चौकट निश्चित की गयी है और संबंधित सरकारी विभाग को निर्देश दे दिए गये है।
‘राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प ने अमरिका के भागीदार तथा मित्र देशों को काबिल बनाने की, अमरिकी व्यवसायों को नये मौके उपलब्ध कराने का तथा रोजगारनिर्मिती का वादा किया था। समर्थता के बल पर शांती इस सिद्धांत का आधार और अमरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुडे हितसंबंधों का विचार करने के बाद नई नीति की रचना की गयी है।’ ऐसे शब्दों में व्हाईट हाऊस की प्रेस सेक्रेटरी साराह सँडर्स नेट्रम्प के नीति की जानकारी दी।
अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष के सहाय्यक अधिकारी पीटर नॅव्हॅरो ने नई नीति का समर्थन किया तथा यह नीति मित्रदेशों को अमरिकी रक्षा सामुग्री उपलब्ध कराने में महत्व का योगदान निभायेगी, ऐसा बताया। साथ ही अमरिकी भागीदार देशों को चीन या फिर रशिया के रक्षा प्रणाली पर निर्भर नही रहना पडेगा, ऐसा विश्वास नॅव्हॅरो ने जताया। राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प के नयी नीति से अमरिकी कंपनियों द्वारा तैयार प्रगत तथा संवेदनशील रक्षा प्रणाली मित्रदेशों को सहजता से उपलब्ध होगी, ऐसा दावा किया जा रहा है।
नयी नीति से होनेवाले बदलाव में अमरिका में बन रहे ‘मिलिटरी ड्रोन्स’ की निर्यात ध्यान खींचनेवाला मसला है। ‘मिलिटरी ड्रोन्स’ को आधुनिक जंग का मुखडा बदलनेवाला महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। पिछले कई सालों से अमरिका सहित दुनिया भर में ‘मिलिटरी ड्रोन्स’ का इस्तेमाल बढ रहा है। अमरिकी सेना तथा खुफिया विभाग ‘सीआयए’ द्वारा एशिया, आफ्रीका तथा खाडी देशों में हुई कारवाई में ‘मिलिटरी ड्रोन्स’ का प्रभावी इस्तेमाल किया गया है।
भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा के कार्यकाल में लगाये गये प्रतिबंधो की वजह से अमरिकी कंपनिया मित्रदेशों को ‘मिलिटरी ड्रोन्स’ की निर्यात बडी मात्रा में नही कर सकते थे। इस वजह से अमरिका के सहयोगी देश इस्राअल तथा चीन ने तैयार किये ड्रोन्स खरीदने की बात सामने आयी थी। अमरिकी रक्षामंत्री जेम्स मॅटिस ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एच. आर. मॅकमास्टर को लिखे खत में इस बात पर ध्यान खींचा था।
अमरिकी सेना की तरफ से इस समय ‘प्रिडेटर’, ‘ग्लोबल हॉक’, ‘रिपर’, ‘रॅव्हन’, ‘सेंटिनल’, ‘ब्लॅकजॅक’ के साथ करीब २० ‘मिलिटरी ड्रोन्स’ का इस्तेमाल हो रहा है।
ट्रम्प नीति का भारत को लाभ
नई दिल्ली – अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष ने हथियारों संबंधी नीति में किये बदलाव का भारत को बडा लाभ होने के संकेत मिल रहे है। कुछ महीने पहले अमरिका ने भारत को ‘मेजर डिफेन्स पार्टनर’ का महत्वपूर्ण दर्जा दिया था। इस वजह से आनेवाले कई सालों मे भारत को अमरिका से लडाकू विमान, हॉवित्झर्स, हेलिकॉप्टर्स, प्रगत निगरानी करनेवाली प्रणाली के साथ उन्नत रक्षा सामग्री मिलेगी, ऐसा निश्चित हुआ था। ट्रम्प के फैसले की वजह से इन सौदों में आनेवाली रोक दूर हो चुकी है, ऐसा माना जाता है।
भारत द्वारा पिछले १० सालों में अमरिका से करीब १५ अरब डॉलर्स के रक्षा सामुग्री की खरीददारी हुई है। यह प्रमाण आनेवाले समय में करीब १०० अरब डॉलर्स तक जाने की संभावना है। पिछले साल भारत ने अमरिका के साथ ‘गार्डियन ड्रोन्स’ की खरीद का समझौता किया है। वायुसेना के लिए हमलों के लिए इस्तेमाल होनेवाले ‘प्रिडेटर सी ऍव्हेंजर’ की मॉंग की गयी है। भारतीय वायुसेना करीब ८० से १०० तक ड्रोन्स खरीदने के तैयारी में है और इसका मूल्य करीब आठ अरब डॉलर्स तक रहने की संभावना है।
इस समाचार के प्रति अपने विचार एवं अभिप्राय व्यक्त करने के लिए नीचे क्लिक करें:
https://twitter.com/WW3Info/status/988322732944355328 | |
https://www.facebook.com/WW3Info/posts/385698265171997 |