बुडापेस्ट – ‘युरो चलन यानी जाल होने की बात अब यूरोपिय देशों ने स्वीकारनी होगी| यह चलन अबतक सोने की खदान साबित नही हुई है| यूरोझोन और इस के बाहरी यूरोपिय देशों ने भी युरो यह एक धारणात्मक गलती थी, इसका स्वीकार करना जरूरी है| साथ ही यूरोपिय देशों ने इससे बाहर निकलने का विकल्प होना चाहिए’, यह सनसनीखेज चेतावनी हंगेरी की ‘सेंट्रल बैंक’ के प्रमुख ग्यॉर्गी मैतोल्सी ने दी है|
फिलहाल यूरोपिय देशों में ‘ब्रेक्जिट’ के मुद्दे पर बडी बेचैनी है और अमरिका-चीन व्यापारयुद्ध एवं अन्य मुद्दों की वजह से अर्थव्यवस्था पर दबाव बढने लगा है| यूरोप की प्रमुख अर्थव्यवस्था के तौर पर पहचाने जा रहे जर्मनी, फ्रान्स, इटली, स्पेन जैसे देशों में मंदी की स्थिति बनी है और महासंघ का विकासदर में गिरावट होने की चेतावनी अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने इससे पहले ही दिया है| साथ ही कई सदस्य देशों के प्रमुख राजनयिक दलों में ‘युरो’ के विरोध में होनेवाली नाराजगी बरकरार होने की बात भी सामने आ रही है|
हंगेरी यह महासंघ का अहम सदस्य देश है, फिर भी शरणार्थियों के साथ अन्य कई मुद्दों पर महासंघ के साथ लगातार विवाद हो रहा है| ‘युरो’ यह इन्हीं में से एक प्रमुख मुद्दा है और महासंघ का अतर्ंगत व्यवस्था में हो रहा हस्तक्षेप भी नाराजगी का प्रमुख कारण साबित हुआ है| इस पृष्ठभूमि पर हंगेरी की सेंट्रल बैंक के प्रमुख ने युरो के विरोध में खुलेआम अपनाई भूमिका ध्यान आकर्षित करनेवाली साबित हुई है|
‘वर्ष १९९९ के पहले यूरोपिय महासंघ के सदस्य देशों को सफलता एवं प्रगति के लिए युरो जैसे समान चलन की जरूरत का एहसास नही हुआ था| युरोझोन का हिस्सा बने अन्य सदस्य देशों को भी इसके बाद युरो से कुछ लाभ होता नही दिखा है| अब इस नुकसान करनेवाले और निरर्थक सपने से बाहर निकलने का यही समय हैं’, इन शब्दों में हंगेरी की ‘सेंट्रल बैंक’ के प्रमुख ग्यॉर्गी मैतोल्सी ने ‘युरो’ पर आलोचना की|
अमरिका में वर्ष २००८ में देखी गई मंदी के बाद युरोप को भी बडे आर्थिक संकट का सामना करना पडा था| युरोप के कई देशों ने क्षमता से भी अधिक कर्ज पाने से अर्थव्यवस्था गिरावट के निकट पहुंची थी| इससे यूरोपिय देशों को बाहर निकालने के लिए कई देशों को महासंघ ने ‘बेलआउट’ दिया था| इस अर्थसहायता के बदले में महासंघ ने संबंधित देशों पर बडी मात्रा में अन्यायकारक शर्ते रखी थी| इन शर्तों की वजह से ‘बेलआउट’ की निती के विरोध में यूरोपिय जनता में असंतोष की कडी भावना बनी थी|
इसी से ‘युरो’ चलन के विरोध में बनी नाराजगी भी सामने आयी है और पिछले कुछ वर्षों में यूरोप के अधिकांश देशों से इस चलन को हो रहा विरोध बढता दिख रहा है|
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