चीन की अर्थव्यवस्था कर्जे का बोझ उठाने में सक्षम नहीं – अमरीका के संसदीय आयोग का दोषारोपण

कर्जाचे ओझे, कर्जे का बोझ

बीजिंग – चीन की अर्थव्यवस्था पर कर्जे का बोझ लगातार बढ़ता ही चला जा रहा होकर, चीन की आर्थिक व्यवस्था के पास यह बोझ उठाने की ताकत नहीं है, ऐसा दोषारोपण अमरीका के संसदीय आयोग ने किया है। ‘युएस-चायना इकॉनॉमिक अ‍ॅण्ड सिक्युरिटी रिव्ह्यू कमिशन’ (युएसएससी) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, चीन पर बढ़े हुए भारी कर्ज के बोझ पर गौर फरमाया। कुछ ही दिन पहले अमरीका के ‘फेडरल रिझर्व्ह’ ने यह जताया था कि चीन में रियल एस्टेट क्षेत्र में आये संकट के कारण चीन की अर्थव्यवस्था पर तनाव बढ़ सकता है और उसका झटका अमरीका समेत जागतिक अर्थव्यवस्था को लगेगा। उसके बाद दूसरी बार किसी अमरिकी यंत्रणा ने चीन की अर्थव्यवस्था पर मँड़रा रहे ख़तरों के बारे में एहसास करा दिया है।

‘सन २०१९ के अंत तक चीन की अर्थव्यवस्था पर होनेवाला कर्जे का बोझ ३७.२ ट्रिलियन डॉलर्स तक पहुँचा था। यह प्रमाण चीन की जीडीपी के २६२.९ प्रतिशत है। सन २०१० के अंत तक चीन पर होने वाला कर्ज जीडीपी के १७८.८ प्रतिशत इतना था। बैंक ऑफ इंटरनॅशनल सेटलमेंट्स की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई थी। उसके बाद २०१९ से २०२० इस एक साल की अवधि में चीन की अर्थव्यवस्था पर कर्ज भारी मात्रा में बढ़ा है। सन २०२० के अंत तक चीन पर होने वाला कर्जे का बोझ जीडीपी के २८९.५ प्रतिशत इतना बढ़ा होने की बात सामने आई थी’, इन शब्दों में अमरिकी आयोग ने चीन पर बढ़ते कर्ज का एहसास करा दिया।

कर्जाचे ओझे, कर्जे का बोझ

सन २००८ में आई जागतिक मंदी के बाद चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था संवारने के लिए कर्ज के रूप में बड़े पैमाने पर अर्थ सहायता उपलब्ध करा दी थी। उसके बाद सन २०१६ से चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था पर होने वाला कर्ज का बोझ कम करने की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन यह प्रक्रिया असफल साबित हुई होकर, उल्टे कर्ज का बोझ अधिक से अधिक बढ़ता रहा। सन २००८ की मंदी के बाद दी अर्थसहायता के कारण खड़ा हुआ कर्ज का संकट, चीन की अर्थव्यवस्था तथा अंतर्गत यंत्रणा से उठा नहीं जा रहा है, इस पर अमरिकी आयोग ने गौर फरमाया है। उसी में कोरोना की पृष्ठभूमि पर, अर्थव्यवस्था को पहले जैसी बनाने के लिए चीन ने फिर एक बार अर्थसहायता का ही सहारा लिया होने का दावा भी अमरिकी आयोग ने किया।

इस कारण चीन की अर्थव्यवस्था पर होने वाला खर्च का प्रमाण लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है। पिछले साल चीन के पूर्व वित्त मंत्री लोउ जिवेई ने भी कर्ज के संकट के बारे में चिंता जाहिर की थी, इसका जिक्र अमेरिकी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में किया है। चीन की सरकार पर होने वाला खर्च कबूल वित्तीय स्थिरता तथा आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित होता है कमा ऐसा जिवेई ने कहा था।

कर्जाचे ओझे, कर्जे का बोझ

पिछले कुछ दशकों में चीन ने किसी भी कीमत पर आर्थिक विकास हासिल करने की नीति अपनाई थी। इस कारण हालाँकि चीन की तेज प्रगति हुई थी, फिर भी उसकी कीमत कर्ज के बोझ के रूप में चुकती करनी पड़ेगी, यह बात अब सामने आ रही है। पिछले साल भर में चीन की अर्थव्यवस्था में हुई गतिविधियाँ और वित्त संस्थाओं तथा अर्थ विशेषज्ञों द्वारा दी गई गिरावट की चेतावनियाँ इसकी पुष्टि करनेवालीं साबित होती हैं। अमरिकी आयोग ने दी चेतावनी भी इसी का भाग दिख रही है।

चीन के निजी क्षेत्र पर फिलहाल २७ ट्रिलियन डॉलर्स के कर्ज का बोझ होकर, जीडीपी की तुलना में यह मात्रा तकरीबन १६० प्रतिशत इतनी है। चीन की अर्थव्यवस्था में होनेवाले खुफ़िया कर्ज की जानकारी भी सामने आने लगी है। चीन के स्थानिक प्रशासनों के माध्यम से शुरू किए प्रोजेक्ट्स पर होनेवाले कर्ज का बोझ नियंत्रण के बाहर चला जा रहा होने की बात सामने आई है। विभिन्न माध्यमों से सामने आई जानकारी के अनुसार यह खुफिया कर्ज़ लगभग ८.३ ट्रिलियन डॉलर्स इतना भारी है। नोमुरा इस वित्त संस्था के अर्थ विशेषज्ञों ने किए दावे के अनुसार, यह प्रमाण चीन के जीडीपी के ४० प्रतिशत से अधिक है।

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