बर्लिन/पैरिस/लंदन – रशिया-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर ईंधन की कीमतें और महंगाई में उछाल आने से सबसे बड़ा नुकसान यूरोपिय देशों का होता गया। यूरोप के कई प्रमुख देशों में आम जनता ‘कॉस्ट ऑफ लिविंग क्राइसिस’ का मुकाबला करने के लिए मज़बूर हैं। इसकी तीव्र गूंज यूरोपिय देशों में सुनाई दे रही है और कई प्रमुख देशों में व्यापक प्रदर्शन शुरू हुए हैं। इनमें ब्रिटेन, फ्रान्स, जर्मनी जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का समावेश है।
फ्रान्स में पिछले कुछ महीनों से सेवानिवृत्ति की आयु को लेकर होने वाले प्रदर्शन हिंसक रूप धारण कर चुके हैं। ऐसे में जर्मनी में वेतन वृद्धि के मुद्दे पर सोमवार को पूरे देश में हड़ताल का आवाहन किया गया। ब्रिटेन में स्कूल, रेल्वे, अस्पतालों के कर्मचारी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं और हवाई अड्डे एवं सरकारी विभाग के कर्मचारियों ने अगले महीने हड़ताल की चेतावनी दी है।
जर्मनी के प्रमुख कामगार संगठनों ने सोमवार को हडताल का ऐलान किया था। इसको व्यापक समर्थन मिला है और देश की रेल सेवाएं एवं हवाई यातायात बंद है। सड़कों पर यात्रा के आधार वाली सार्वजनिक बस सेवाएं भी बंद हैं और हड़ताल में तकरीबन ३० लाख कर्मचारियों के शामिल होने का बयान दो प्रमुख कामगार संगठनों ने किया है। जर्मनी में पिछले कुछ महीनों से महंगाई दर आठ से नौं प्रतिशत के करीब रहा और इसका मुकाबला करने के लिए कर्मचारियों ने वेतन वृद्धि की मांग की है। दोनों संगठनों ने १०.५ से १२ प्रतिशत वेतन वृद्धि का प्रस्ताव रखा है। यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया तो आगे भी हड़ताल और प्रदर्शन हो सकते हैं, ऐसा इशारा इन संगठनों ने दिया है।
जर्मनी में प्रदर्शन जारी हैं और वहीं फ्रान्स में प्रदर्शनों के दौरान हिंसा हो रही है। राजधानी पैरिस के अलावा पश्चिम फ्रान्स के कुछ हिस्सों में प्रदर्शनकारी और सुरक्षा यंत्रणा के बीच लगातार मुठभेड़ होने की जानकारी माध्यमों ने साझा की है। फ्रान्स के कामगार संगठन और विपक्ष ने यह प्रदर्शन लंबे समय तक जारी रखने के संकेत दिए हैं। इसकी वजह से राष्ट्राध्यक्ष इमैन्युएल मैक्रॉन की हुकूमत के सामने खड़ी चुनौतियां अधिक तीव्र होने की बात मानी जा रही है। मैक्रॉन द्वारा सेवानिवृत्ति की आयु ६२ से बढ़ाकर ६४ वर्ष करने के लिए पेश किया गया कानून ही फ्रान्स में प्रदर्शनों की जड़ है।
लेकिन, कुछ दिनों से छात्र एवं युवा संगठन एवं स्वसंसेवी गुट भी इन प्रदर्शनों में उतर रहे हैं। इसकी वजह से फ्रान्स में प्रदर्शन सिर्फ सेवानिवृत्ति के कानून विरोधी नाराज़गी का प्रतिक है, ऐसा कहा जा रहा है। फ्रान्स के प्रदर्शन रोकने के लिए सरकार हर तरह की कोशिश कर रही है, फिर भी प्रस्तवित कानून के मुद्दे से पीछे हटने के लिए राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन ने स्पष्ट इन्कार किया है।
यूरोप की शीर्ष अर्थव्यवस्था ब्रिटेन में भी वेतन वृद्धि के मुद्दे पर प्रदर्शन जारी हैं। पिछले कुछ महीनों से स्कूल, अस्पताल एवं सार्वजानिक परिवहन सेवाओं के कर्मचारियों ने प्रदर्शन और हड़ताल जारी रखे थे। अगले कुछ महीनों में हवाई अड्डा एवं चार सरकारी विभागों के कर्मचारियों ने भी हड़ताल की चेतावनी दी है। इसकी वजह से अगले महीने ब्रिटेन में जनजीवन बाधित होने के संकेत प्राप्त हुए हैं।
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