चीन में राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग इनके एकाधिकारशाही को जबरदस्त झटका

चीन में राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग इनके एकाधिकारशाही को जबरदस्त झटका

लंदन – अमरिका के साथ व्यापार युद्ध का प्रभाव चीन के अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा हैं इस से राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग के एकाधिकारशाही को चीन में जबरदस्त झटके लग रहे है। राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग की नीती पर चीनी विश्लेषक खुलेआम आलोचना करने लगे हैं। एसे मे जिनपिंग के पूर्ण नियंत्रण मे रहनेवाले कम्युनिस्ट पक्ष के सुधारवादी एवं विद्वान भी जिनपिंग के कारण वजह से पिछले ४० वर्ष में होनेवाले सुधार भी धूल में मिलने जाने के प्रति खेद व्यक्त कर रहे हैं।

कुछ दिनों पहले चीन में बच्चों के लिये निम्न दर्जे की दवाइयो के इस्तेमाल किये जाने की खबरें प्रसिद्ध हुई थी। इसमें होनेवाले गैरकारनामो का संबंध चीन के सर्वोच्च नेता जिनपिंग से जोड़ा गया था। सत्ता मे आने पर राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने भ्रष्टाचार एवं गैरकारनामो के विरोध में कड़ी कार्रवाई अपनाकर चीन के वरिष्ठ नेता एवं अधिकारियों के प्रति भी दया नहीं की जाएगी, ऐसी गवाही दी थी। भ्रष्टाचार विरोधी नेता के रुप मे अपनी प्रतिमा निर्माण करनेवाले राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग इनके कार्यकाल में होनेवाले घोटालों की वजह से उनके स्थान को जबरदस्त झटका लगा है। चीन की अर्थव्यवस्था में होनेवाली गिरावट यह राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग के सम्ख्श सबसे बड़ी समस्या मानी जा रही है।

अमरिका के साथ व्यापारयुद्ध शुरू होने के बाद चीन के बीच अर्थव्यवस्था काफ़ी तनाव आ रहा है इससे आर्थिक प्रगति मंद हो रही है। इससे आनेवाले समय में चीन की अर्थव्यवस्था को अधिक जटिल समस्याओं का सामना करना होगा, ऐसे तीव्र संकेत निर्मान हो चुके व्यापार युद्ध से मिल रहे हैं। ऐसे समय में राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग द्वारा आक्रमक विदेश नीति तथा आर्थिक नीति पर भी चीनी विश्लेषक प्रश्न उठा रहे हैं। अति आक्रामक नीति के कारण चीन की प्रतिमा विस्तारवादी देश के समान बनती जा रही है इसी वजह सभी देश भयभीत हो गये हैं। यह बात चीन को महंगी पड़ सकती है ऐसा दावा एक विश्लेषक ने किया था। उस समय ‘वन रोड वन बेल्ट’ के लिए चीन द्वारा विदेश में काफ़ी अधिक मात्रा मे किया गया निवेश भी आलोचना का विषय बन गया है।

दूसरे देशों में बहुत बड़ा निवेश करने की अपेक्शा बदले चीन के राष्ट्राध्यक्ष को अपने देश में ही अधिक निवेश करना अपेक्षित था, ऐसा आरोप अर्थविशेषज्ञों ने किया है। साथ ही ” माओ त्से तुंग” के कार्यकाल के बाद चीन में शुरू राजनीतिक सुधार की प्रक्रिया राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने बंद कर दी है। इतना ही ब्ल्कि वे चीन को राजनीति द्रुष्टीकोन से भी काफ़ी अधिक पीछे ले गए हैं ऐसा दावा करते हुए कई विश्लेषकों ने उनके प्रती आलोचना अधिक तीव्र कर दी है।

चीन में कम्युनिस्ट पक्ष की एकाधिकारशाही होने से इस पक्ष पर फ़िलहाल जिनपिंग का पूर्ण नियंत्रण है। पर चीन की अर्थव्यवस्था खतरे में आने से और इसकी वजह के कारण जनता की नाराजगी बढ़ने लगी है। इस से राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग थोडी उलझन में फँसते दिखाई दे रहे हैं। ऎसे में उनपर कम्युनिस्ट पक्ष के सुधारवादी एवं बुद्धिमान लोग भी आलोचना करने लगे हैं, यह इत्त्फ़ाक बिल्कुल नहीं है। यह विरोध राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग इनकी सत्ता मे उथल पुथल मचाने इतना तीव्र नहीं है, फिर भी इससे शी जिनपिंग इनके एकाधिकारशाही को जबरद्स्त झटका लगने की बात स्पष्ट हो रही है। यह विशय पाश्चात्य माध्य्मोंने उठा रखा है। इससे आनेवाले समय में चीन में जिनपिंग के प्रति होनेवाला विरोध अधिक तीव्र रुप धारण कर लेगा ऐसा विशेषज्ञों का मानना है।

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