बर्लिन/ब्रुसेल्स – ‘यदि मै जर्मनी का चान्सलर होता तो शरणार्थियों के विरोध में कडी भूमिका अपनाता और उन्हे खदेड बाहर करने के लिये आदेश देता। इस के लिये मुझे पद त्यागना पडता तो भी परवा नही करता.’
हंगेरी के प्रधानमंत्री व्हिक्टर ऑर्बन इन्होंने केवल तीन महिने पहले जर्मन चान्सलर अँजेला मर्केल इनके विरोध में कडी आलोचना करते समय यह वक्तव्य किया था। इस में से ‘पद का त्याग’ इस मुद्देपर चान्सलर मर्केल गंभीरता से विचार करेगी, इसकी छोटीसी भी संभावना नही थी। लेकिन एक समय मे ‘युरोप की नेता’ ऐसी पहचान मिली अँजेला मर्केल इन्हे, एक के पिछे एक मिल रहे सियासी झटकों के कारण पदत्याग करने की घोषणा करने के लिये मजबूर किया है।
इतवार के दिन हेस प्रांत में हुए चुनाव में, मर्केल इनके ‘ख्रिश्चन डेमोक्रेटिक युनियन’ (सीडीयू) पक्ष को प्राप्त हुए वोटों मे ११ फिसदी वोट कम हुए है। इसी के साथ इस चुनाव में ‘सीडीयू’ को प्राप्त हुए वोटों की फिसदी २७ फिसदी इस नीच्चांकी स्तर तक गिरी है। पिछले १५ साल में सीडीयू ने दर्ज किया यह नीच्चांक इस पक्ष की सुप्रीमो जानेवाली अँजेला मर्केल इनकी सियासी कार्यकाल की समाप्ती तय करने के लिये अंतिम घटना साबित हुआ है।
केवल एक महिने के अंतराल में ‘बव्हेरिया’ और ‘हेस’ प्रांत में गवांया बहुमत मर्केल के लिये बडी चिंता का विषय बनी है। यह बहुमत गवांने के पिछे शरणार्थीयों के झुंड का जर्मनी मे स्वागत करने की धारणा, यह बहोत बडा मुद्दा साबित हुआ है। इन झुंड के कारण जर्मनी में उभरी समस्या मर्केल सरकार ने उचित तरीके से नियंत्रित नही की। इसी कारण जर्मन मतदारों ने चुनाव के जरिये अपनी नाराजगी जताई है, ऐसा कहा जा रहा है।
पक्ष और देश इन दोनों स्तर की जिम्मेदारी संभालते समय उभरी मुश्किल परिस्थिती से संभलने के लिये मर्केल इन्होंने पक्ष की प्रमुख पद से हटने का निर्णय लिया। इस वर्ष के आखिर में होने वाले पक्ष प्रमुख की चुनाव में शामिल ना होने की घोषणा मर्केल ने की है। पिछला देढ दशक पक्ष और देश यह दोनों जिम्मेदारी संभाल रही मर्केल इनकी इस घोषणा के तीव्र परिणाम जर्मनी के साथ ही युरोप में उमडते दिखाई दिए है।
मर्केल इन्होंने की हुई घोषणा के बाद जर्मनी और युरोप के माध्यमों के साथ विश्लेषकों ने वह केवल पक्ष की जिम्मेदारी से दूर हो रही है और बतौर जर्मनी की चान्सलर वह २०२१ तक कायम रहेगी, यह मुद्दा डटकर सामने लाया है। लेकिन इसे २४ घंटे होने से पहलेही मर्केल इनके पक्ष के उनके विरोधकों ने वह शिर्षपद की स्पर्धा में है, ऐसा घोषित किया है। पक्ष नेतृत्त्व के लिये कोशिष करने के साथ ही मर्केल इनकी ‘चान्सलर’ पद का निर्णय सीडीयू पक्ष और सत्ता में बनी गठबंधन सरकार के सहयोगी पक्ष लेंगे, ऐसे संकेत भी प्राप्त हुए है।
इस परिस्थिती में इस साल के आखिर तक पक्ष का प्रमुख पद त्याग रही मर्केल चान्सलर पद ज्यादा समय तक कायम नही रहेगा, ऐसी चर्चा जर्मन माध्यम और विश्लेषकों में शुरू हुई है। मर्केल के उपरांत पक्ष की डोर संभालने के लिये स्पर्धा में उतरे दोनो नेता उनके कडे विरोधक जाने जाते है। इन में फिलहाल स्वास्थ्य मंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे जेन्स स्पाह्न और एक समय में सीडीयू के ‘युवा विंग’ की डोर संभालने वाले फ्रेडरिक मर्झ इनका समावेश है।
यह दोनों मर्केल की शरणार्थीयों के विषय में अपनाई धारणा के कडे विरोधक रहे है। मर्झ ने तो आलोचना करते समय कहा था कि, ‘मर्केल चान्सलर होने के लायक नही है।’ इनमे से कोई भी पक्ष प्रमुख होता है तो, मर्केल ज्यादा समय तक चान्सलर बनी रहना मुमकीन नही होगा, ऐसा अंदाजा इसी समय व्यक्त हो रहा है।
चान्सलर मर्केल इन्हों ने पिछले कुछ वर्षों में ‘जर्मनी यानी युरोप’ यह धारणा कायम रहेगी इसके लिये जरूरी पकड युरोपिय महासंघ पर बनाई थी। मर्केल ने पद त्यागने से महासंघ की कई योजनाओं को झटका है और इनका भविष्य खतरे में आ सकता है।
इटली, हंगेरी, पोलंड, झेक रिपब्लिक इन देशों ने पहले ही महासंघ में बने जर्मनी के वर्चस्व के विरोध में चुनौती दि है। अगले साल हो रही युरोपिय संसद का चुनाव महासंघ का भविष्य निश्चित करेगी, ऐसा दावा कुछ महिने से हो रहा है। इन हालात में मर्केल के हाथों से जर्मनी का नेतृत्व जाना महासंघ की स्थापित नेतृत्त्व के लिये बडा झटका साबित हो सकता है।
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