अबुजा – एक-दुसरे के साथ होर रहे व्यापार और आर्थिक सहयोग में बढोतरी करने के लिए १५ पश्चिमी आफ्रीकी देशों ने ‘इको’ यह आम चलन स्वीकारने का निर्णय किया है| वर्ष २०२० से व्यवहार में इस चलन का प्रयोग करने का ऐलान किया गया है| व्यापारयुद्ध और संभावित जागतिक मंदी जैसी चुनौतीयां सामने होते हुए पश्चिमी आफ्रीकी देशों ने उठाया यह कदम काफी अहम साबित हो रहा है|
पश्चिमी आफ्रीका के १५ देशों ने वर्ष १९७५ में ‘इकॉनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट आफ्रिकन स्टेटस्’ (इकोवास) का गठन किया था| इन देशों में ‘नाइजेरिया, माली, बुर्किनो फासो, आयव्हरी कोस्ट, टोगो, नाजयर, गिनिआ, सिएरा लिओन, गांबिया, सेनेगल, बेनिन, घाना, लाइबेरिया, गिनी-बिसु और केप वर्दे शामिल है|
इसके तहेत ‘इकॉनॉमिक ऍण्ड मॉनेटरी युनियन एवं मॉनेटरी झोन इन दो गुटों का स्वतंत्र रूप से गठन किया गया| आर्थिक विकास के लिए मुक्त व्यापारी क्षेत्र एवं समान चलन स्थापित करने का उद्देश्य ‘इकोवास’ ने सामने रखा था| इस गुट के आठ सदस्य देशों ने ‘सीएफ फ्रँक’ यह आम चलन इस्तेमाल करना शुरू भी किया है और ‘इको’ यह अगला स्तर होगा|
लेकिन, एक के पिछे एक फैली जानलेवा महामारी की बिमारीयां, आतंकी संगठनों का बढता प्रभाव और हमलें, वांशिक संघर्ष, हिंसा और राजनयिक अस्थिरता की वजह से आम चलन का नाम के साथ इसका इस्तेमाल करने के लिए जरूरी अमल पर मुहर नही लगी थी| पिछले वर्ष ‘इकोवास’ ने प्रसिद्ध किए अहवाल में प्रादेशिक व्यापार बढाने का मुद्दा उपस्थित करने के साथ आम चलन की तैयारी पर भी जोर दिया गया| इसके बाद कई बैठकों में इस मुद्दे पर बातचीत होनेपर आखिरकार अबुजात में हुई परिषद में ‘इकोवास’ के सदस्य देशों ने चलन का नाम और इसके इस्तेमाल शुरू करने के लिए समय सीमा तय करने में सहमति दिखाई|
कुल १५ देश, ५१ लाख स्क्वेअर किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र, जलगभग ३९ करोड जनसंख्या और १.४८ ट्रिलियन डॉलर्स की अर्थव्यवस्था यह ‘इकोवास’ की क्षमता है| लेकिन, सियासी अस्थिरता और देशों की लांघ गए वांशिक संघर्ष की वजह से पश्चिमी आफ्रिकी देशों में विकास की गती धिमी हुई है| ऐसे में नैसर्गिक आपत्ति और सामाजिक समस्याओं की वजह से व्यापार के लिए जरूरी बढावा देने में स्थानिय हुकूमत एवं अंतरराष्ट्रीय गुट भी बडी तादाद में सफल नही हो सके है|
इस पृष्ठभूमि पर पश्चिमी आफ्रिकी देशों ने एक दुसरे से सहयोग बरकरार रखकर आम चलन का प्रयोग करने के लिए बढाया कदम अहम समझा जा रहा है| पश्चिमी आफ्रिकी देशों के साथ ही आग्नेय एशियाई में ‘आसियन’ गुट के सदस्य देशों ने भी आम चलन लाने की कोशिश शुरू की है| इसी बीच दुसरी ओर कई यूरोपिय देशों को आम चलन से जोडने के की कोशिश के तौर पर यूरो को सामने लाया गया था| लेकिन, ‘यूरो’ को काफी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है और ऐसे में महासंघ के सदस्य देश अब अपनी आर्थिक समस्या के लिए यूरो को जिम्मेदार कर रहे है|
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