बीजिं – चीन और अमरीका इन दोनों देशों ने आपसी हितसंबंधों का सम्मान करके मतभेदों का हल निकालने के लिए प्रयास करने चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ और चीन एवं अमरीका ये दोनों देश संघर्ष के लिए आमनेसामने खड़े हुए, तो उसमें दोनों देशों का नुकसान ही होगा, ऐसी चेतावनी चीन के प्रधानमंत्री ली केकिआंग ने दी। पिछले कुछ सालों से व्यापार, सायबरहल्ले, तैवान, साउथ चायना सी, हाँगकाँग इन मुद्दों में अमरीका और चीन में लगातार अनबन हो रही होकर, कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर दो देशों में बना तनाव शीतयुद्ध की कग़ार पर पहुँच चुका है। इस पृष्ठभूमि पर चीन के प्रधानमंत्री ने दी चेतावनी ग़ौरतलब साबित होती है।
चीन ने पिछले कुछ सालों से, जागतिक महासत्ता बनने की महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए तेज़ी से कदम उठाने की शुरुआत की है। उसके लिए आर्थिक एवं लष्करी ताकत के ज़ोर पर आक्रमक विस्तारवाद की नीति पर अमल किया है। इस नीति के अनुसार, विद्यमान जागतिक महासत्ता होनेवाली अमरीका को हर एक क्षेत्र में चुनौती देने की गतिविधियाँ शुरू हैं। अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प को इस ख़तरे की एहसास होकर, उन्होंने चीन के वर्चस्व को झटका देने के लिए कई मोरचों पर संघर्ष की भूमिका अपनायी है।
ट्रम्प की आक्रमकता के कारण हालाँकि चीन के ईरादों को झटकें लग रहे हैं, लेकिन फिर भी सत्ताधारी कम्युनिस्ट हुक़ूमत द्वारा पीछे हटने के कोई भी संकेत दिये नहीं गए हैं। उल्टे आंतर्राष्ट्रीय क़ानून और नियमों को ठुकराते हुए, अमरीका के साथ ही पड़ोसी देशों को धमकाकर संघर्ष छेड़ने के प्रयास शुरू हैं। प्रधानमंत्री केकिआंग की चेतावनी भी इसीका भाग है।
चीन में हुई एक पत्रकार परिषद में प्रधानमंत्री केकिआंग ने, अमरीका के साथ के व्यापारी संघर्ष के मुद्दे पर चीन की भूमिका स्पष्ट की। ‘अमरीका और चीन इन दोनों देशों में प्रदीर्घ समय से आर्थिक तथा व्यापारी संबंध होकर, दोनों देशों को उससे फ़ायदा हुआ है। चीन और अमरीका के बीच ये संबंध अच्छे रहना दोनों देशों के तथा दुनिया के भी हित में रहेगा।
अमरीका यदि दोनों देशों के बीच के आर्थिक एवं व्यापारी संबंधों को प्रभावित करने की कोशिश करती है, तो वह किसी के भी हित में नहीं रहेगा और दुनिया के लिए भी हानिकारक साबित होगा’, ऐसा चीन के प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा। उसी समय केकिआंग ने, फिलहाल चीन और अमरीका के बीच के संबंधों में कुछ समस्याएँ और चुनौतियाँ हैं, इसकी भी क़बुली दी है।
चीन के प्रधानमंत्री हालाँकि अमरिकी नेतृत्व को संघर्ष टालने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन वास्तव में चीन की भूमिका संघर्ष भड़काने की ही है, यह बात साऊथ चायना सी की नयीं घटनाओं से स्पष्ट हो रही है। चीन के लष्कर ने गुरुवार को एक निवेदन जारी कर, अमरीका के युद्धपोत को साऊथ चायना सी क्षेत्र में खदेड़ दिया होने का दावा किया। इस समय चिनी लष्कर के प्रवक्ता ने, अमरीका की साऊथ चायना सी क्षेत्र के कारनामें चीन की सार्वभूमता को झटका देनेवाले और उक़साऊ होने का आरोप भी किया।
लेकिन चीन के इन आरोपों को अमरीका ने मुँहतोड़ जवाब दिया होकर, अपना युद्धपोत ‘फ्रीडम ऑफ नेव्हिगेशन’ के आंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए गश्ती कर रहा था, ऐसा कहा है। साऊथ चायना सी क्षेत्र में ‘पॅरासेल आयलंड’ के नाम से जाने जानेवाले भाग में यह घटना घटित हुई होकर, अमरीका का ‘युएसएस मस्टीन’ यह क्षेपणास्त्रसज्ज विध्वंसक पोत इस भाग में गश्ती कर रहा था। पिछले महीने में भी अमरीका के दो युद्धपोतों ने ‘स्प्रेटले’ तथा ‘पॅरासेल आयलंड’ इन् भागों में गश्ती की थी।
अमरिकी युद्धपोतों की साऊथ चायना सी में यह बढ़ती आवाजाही चीन की विस्तारवादी नीति के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बना है। इसी कारण, चीन की नौसेना द्वारा बारबार अमरिकी युद्धपोतों का पीछा कर उन्हें बाहर खदेड़ दिया होने की दावे किये जा रहे हैं। लेकिन ऐसीं घटनाओं के बाद भी, अमरीका ने अपने युद्धपोतों की गश्ती रोकी नहीं है, उल्टे अपने मित्रदेशों के साथ इस क्षेत्र में संयुक्त नौसेना अभ्यासों का प्रमाण भी बढ़ाया है। अमरीका की यह नीति, चीन की वर्चस्ववादी महत्त्वाकांक्षा को खुलेआम दी हुई चुनौती साबित हो रही है।
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