बीजिंग – चीन की ६० करोड़ जनता अत्यल्प आय पर जी रही है, जो एक हज़ार युआन प्रति माह से भी कम है, इस प्रधानमंत्री ली केकियांग के बयान से चीन मे खलबली मची है। मार्च महीने में चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने, देश को ‘गरीबी हटाव’ मुहिम में बड़ी सफलता मिली होने की दावा किया था। लेकिन प्रधानमंत्री केकियांग के बयान से इस दावे को छेदा गया होकर, चिनी जनता और विश्लेषक राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग के दावे पर सवाल उपस्थित कर रहे हैं। किछ विदेशी विश्लेषकों ने यह घटना चीन के अंतर्गत राजनीतिक संघर्ष का भाग है, ऐसा कहा है।
कोरोना की महामारी और अमरीका के ख़िलाफ़ व्यापारयुद्ध इनके साथ अधिकांश मोरचों पर चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग का नेतृत्व असफल साबित हुआ होने की चर्चा सोशल मीडिया पर तथा विदेशी प्रसारमाध्यमों में जारी है। चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने देश की आम जनता की स्थिति को लेकर किया बयान उस चर्चा को अधिक ही बढ़ावा देनेवाला साबित हुआ है। प्रधानमंत्री केकियांग ने अपने बयान में, चीन की ४० प्रतिशत से भी अधिक जनता अपनी मासिक आय से, किसी छोटे शहर में किराये का मक़ान तक नहीं ले सकती, इसपर ग़ौर फ़रमाया। उनकी यह बयान, हालाँकि आम जनता तथा विश्लेषकों के लिए कौतुक का मुद्दा साबित हुआ है, फिर भी चीन के राजनीतिक दायरे में काफ़ी खलबली मची है।
चीन के निजी अभ्यासगुटों ने, प्रधानमंत्री केकियांग का बयान चीन का वर्तमान वास्तव दिखानेवाला है, ऐसी राय ज़ाहिर की है। ‘थिंक चायना’ नामक वेबसाईट ने एक लेख में, ‘पिछले कुछ दशकों में आर्थिक विकास का भव्य चित्र दुनिया को दिखानेवाला चीन क्या वाक़ई अमीर है?’ ऐसा सवाल चीन की कम्युनिस्ट हुक़ूमत से किया है। वैबो इस चीन के सोशल मीडिया ॲप पर, हमें प्रधानमंत्री से यही सच सुनना था, इस प्रकार की प्रतिक्रियाएँ नागरिकों ने दर्ज़ कीं हैं।
जापान के एक अग्रसर अख़बार ने, प्रधानमंत्री केकियांग का बयान और उसके बाद शुरू हुआ विवाद, चीन का अंतर्गत राजनीतिक संघर्ष ज़ाहिर करनेवाला होने का दावा किया। राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने गत कुछ वर्षों में लगातार, देश की ग़रीबी कम होती जा रही है, ऐसा कहकर अपनी खुद की ही पीठ थपथपा ली थी। लेकिन केकियांग के बयान से उसे छेद दिया गया है। प्रधानमंत्री के बयान के बाद हालाँकि चीन की यंत्रणाओं तथा प्रसारमाध्यमों ने लीपापोती की है, फिर भी आम जनता में होनेवाली जिनपिंग की छवि को ज़बरदस्त झटका लगा है। उसी समय, चीन का सर्वोच्च एवं लोकप्रिय नेतृत्व के रूप में खुद को स्थापित करने के जिनपिंग के इरादे भी फिलहाल मिट्टी में मिले हुए दिख रहे हैं।
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की एकाधिकारशाही होकर, इस पार्टी पर जिनपिंग का फिलहाल तो पूर्ण नियंत्रण है, ऐसा बताया जाता है। लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था ख़तरे में पड़ने के कारण और जनता में नाराज़गी बढ़ने लगने के कारण, राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग कुछ हद तक मुश्किल में फ़ँसे दिखायी दे रहे हैं। उसी समय, कम्युनिस्ट पार्टी में रहनेवाले सुधारवादी उनकी आलोचना करने लगे हैं। यह संजोग की बात यक़ीनन ही नहीं है। हालाँकि अभी तक यह विरोध राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग की सत्ता का तख़्ता पलटने जितना तीव्र नहीं है, फिर भी उसके ज़रिये शी जिनपिंग की एकाधिकारशाही को झटकें लगने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। पश्चिमी माध्यमों में इस बात की बहुत चर्चा हो रही है और आनेवाले समय में, चीन में जिनपिंग को होनेवाला विरोध अधिक ही तीव्र हो सकता है, ऐसा विश्लेषकों का कहना है।
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