हाँगकाँग/वॉशिंग्टन – चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने हाँगकाँग सुरक्षा कानून पर हस्ताक्षर किए हैं और बुधवार से इस कानून पर अमल शुरू होगा, ऐसी घोषणा हाँगकाँग प्रशासन ने की है। चीन की इस कार्रवाई पर आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज़ होना सुरू हुआ हैं। इस कानून को मंज़ुरी प्राप्त होने से पहले ही अमरीका ने हाँगकाँग का ‘स्पेशल स्टेटस’ रद करने की प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान किया है। युरोपिय महासंघ, ब्रिटेन, जापान और तैवान ने चीन के इस निर्णय पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
मंगलवार के दिन चीन की संसद की स्टैंडिंग कमिटी ने, हाँगकाँग के लिए तैयार किए गए नैशनल सिक्युरिटी लॉ को मंज़ुरी दी। इसके कुछ ही घंटे बाद, चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने इस कानून के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, यह बात चीन की वृत्तसंस्था ने घोषित की। चिनी राष्ट्राध्यक्ष ने किए हस्ताक्षर के बाद हॉंगकॉंग के प्रशासकीय प्रमुख कॅरी लॅम ने, बुधवार से इस कानून पर अमल शुरू होगा, यह घोषणा भी की। १ जुलाई यह दिन चीन एवं हाँगकाँग दोनों के लिए काफी अहम समझा जाता है। २३ वर्ष पहले यानी सन १९९७ में इसी दिन, हाँगकाँग अधिकृत स्तर पर चीन का हिस्सा बना था। इस वजह से चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ने, हाँगकाँग पर पूरी तरह से कब्ज़ा करने के लिए तैयार किए हुए कानून पर अमल शुरू करने के लिए इसी दिन का चयन किया हुआ दिख रहा है।
हाँगकाँग पर सर्वंकष नियंत्रण प्राप्त करना संभव हो, इसके लिए चीन के शासकों ने सन २००३, २०१४ और २०१९ में अलग अलग विधेयक पेश किए थे। सन २०१४ में चीन के शासक हाँगकाँग पर दबाव बनाने में और अपना विधेयक थोपने में कामयाब हुए थे। लेकिन, पिछले वर्ष हाँगकाँग की जनता ने कम्युनिस्ट हुकूमत को कड़ी चुनौती देकर पीछे हटने के लिए मज़बूर किया था। इससे ग़ुस्सा हुई कम्युनिस्ट हुकूमत ने, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लाकर, हाँगकाँग पर अपनी पकड़ और मज़बूत करने के लिए यह निर्णायक कदम उठाया है।
चीन के इस निर्णय पर आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तीव्र प्रतिक्रिया दर्ज़ होना शुरू हुआ है। हाँगकाँग कानून को चीन की संसद में मंज़ुरी मिलने से पहले ही अमरीका ने कार्रवाई शुरू की है। अमरिकी विदेशमंत्री माईक पोम्पिओ ने सोमवार के दिन ही, हाँगकाँग का ‘स्पेशल स्टेटस’ रद करने की प्रक्रिया शुरू होने का ऐलान किया था। ‘चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ने हाँगकाँग की आज़ादी कुचलनेवाला निर्णय किया है। इससे ट्रम्प प्रशासन को हाँगकाँग संबंधित नीति में बदलाव करना पड़ा है। इसके आगे अमरीका के लिए, हाँगकाँग और चीन अलग अलग नही होंगे, बल्कि एक ही होंगे। इससे हाँगकाँग को प्रदान की गई सहूलियत हटाई जा रही है। अमरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा का विचार करके यह निर्णय किया गया है’ यह बात पोम्पिओ ने कही।
ब्रिटेन के विदेशमंत्री डॉमिनिक राब ने, चीन ने हाँगकाँग सुरक्षा कानून को दी हुई मंज़ुरी काफ़ी गंभीर घटना है, यह मत व्यक्त किया है। चीन की हुकूमत ने हाँगकाँग के मुद्दे पर आंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दिए वचनों का पालन नहीं किया हैं, यह आरोप भी ब्रिटीश विदेशमंत्री ने किया। युरोपिय महासंघ ने चीन के इस निर्णय पर कड़ा निषेध दर्ज़ किया है और इसके आगे चीन को विश्वसनीय व्यापारी साझेदार समझे या नहीं, इसपर दोबारा सोचना होगा, ऐसी चेतावनी भी दी है। जापान और तैवान ने भी हाँगकाँग कानून के निर्णय पर कड़ी नाराज़गी व्यक्त की है और इस मुद्दे पर हम आंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ होने की बात भी स्पष्ट की है।
हाँगकाँग सुरक्षा कानून को मंज़ुरी देकर चीन की हुकूमत ने फिर एक बार, हम आंतर्राष्ट्रीय कानून और नियमों की परवाह नहीं करते हैं, यही बात दिखाई है। इससे पहले साउथ चायना सी एवं उइगुरवंशियों के मुद्दे पर भी चीन ने, संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी जागतिक संगठन के निर्णय एवं रिपोर्ट ठुकराए थे। हाँगकाँग का समझौता भी संयुक्त राष्ट्रसंघ का हिस्सा है। लेकिन, इसे भी ठुकराकर चीन ने आंतर्राष्ट्रीय समुदाय के तीव्र गुस्से को आमंत्रित किया है।
चीन ने हाँगकाँग संबधित कानून को मंजूरी देने के बाद, इसपर अमरीका से प्राप्त हुई प्रतिक्रियाओं का चीन पर असर नहीं होगा, यह बयान चीन के विदेश मंत्रालय ने किया है। अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के नज़रिये से चीन ने यह निर्णय किया है। इस मामले में दबाव बनाकर चीन को पीछे हटने के लिए मज़बूर करने की अमरीका की कोशिश पहले की तरह ही व्यर्थ साबित होगी, यह बयान चीन के विदेश विभाग के प्रवक्ता झाओ लीजिअन ने किया है। लेकिन चीन के निर्णय पर अमरीका और ब्रिटेन समेत युरोपिय देशों से प्राप्त हुई तीव्र प्रतिक्रिया पर ग़ौर करें, तो चीन के लिए यह निर्णय काफ़ी महँगा साबित होगा, ऐसें संकेत प्राप्त हो रहे हैं।
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