आर्मेनिया-अज़रबैजान की जंग में ५० से अधिक सैनिक मारे गए

आर्मेनिया-अज़रबैजान की जंग में ५० से अधिक सैनिक मारे गए

येरेवान/बाकु – मध्य एशिया के आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच शुरू हुई जंग में अब तक ५० से अधिक सैनिक मारे गए हैं और सैकड़ों घायल होने का दावा किया जा रहा है। रविवार के दिन हुआ यह संघर्ष आर्मेनिया की आज़ादी और स्वाभिमान पर हुआ हमला होने का आरोप आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान ने किया है और आर्मेनिया की जनता युद्ध के लिए तैयार होने का इशारा भी दिया। तभी अज़रबैजान के राष्ट्राध्यक्ष इलहाम अलियेव ने अज़रबैजान की सेना मातृभूमि के लिए लड़ रही है और जीत हमारी ही होगी, यह दावा भी किया। इसी बीच अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने हिंसा रोकने के लिए मध्यस्थता करने की तैयारी दिखाई है। लेकिन, तुर्की ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई कोशिश नाकाम होने का दावा करके आर्मेनिया को धमकाया है।

रविवार की भोर के साथ ही अज़रबैजान में स्थित नागोर्नो-कैराबख के विवादित क्षेत्र में जोरदार संघर्ष शुरू हुआ। दोनों देशों ने बड़ी संख्या में सेनाओं को उतारा है और पूरा निर्णय होने तक संघर्ष जारी रहेगा, यह इशारा भी दिया है। इसकी वजह से लगातार दूसरे दिन भी दोनों ओर से जोरदार हमले हो रहे हैं और प्रतिद्वंद्वि का बड़ा नुकसान करने का दावा भी किया जा रहा है। अज़रबैजान के ४३ टैंक, २७ ड्रोन्स और चार हेलिकॉप्टर्स तहस नहस करने की जानकारी आर्मेनिया ने साझा की है। उसी समय अज़रबैजान के कई सैनिक ढ़ेर होने का दावा भी किया है और इस जंग में अपने ३० से अधिक सैनिक मारे जाने की बात कही है। तभी, आर्मेनिया के २२ टैंक, १८ ड्रोन्स और १५ एअर डिफेन्स सिस्टम्स तहस नहस करने का दावा अज़रबैजान ने किया है।

दोनों ओर से जारी इन हमलों में अब तक २० से अधिक आम नागरिक मारे गए हैं और सैकड़ों घायल होने की बात कही जा रही है। नागोर्नो-कैराबख के हज़ारों नागरिक स्थानांतरण करने लगे हैं, यह जानकारी भी सूत्रों ने साझा की। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश देशों ने यह हिंसा बंद करने के लिए दोनों देशों को आवाहन किया है। इनमें रशिया के साथ अमरीका और यूरोप का भी समावेश है। लेकिन, तुर्की ने अज़रबैजान का समर्थन करने की आक्रामक भूमिका अपनाई है और आर्मेनिया को पीछे हटने के लिए धमकाना भी शुरू किया है।

बीते ३० वर्षों से नागोर्नो-कैराबख के मसले का हल निकालने के लिए विश्व स्तर पर हो रही कोशिश पूरी तरह से नाकाम हुई है। इस क्षेत्र पर हुए हमले की वजह से जो स्थिति बनी है उसका हमेशा के लिए हल निकालने का अवसर है, ऐसी धमकी तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन ने दी है। तुर्की ने अज़रबैजान को बड़ी मात्रा में लष्करी सहायता प्रदान करने के दावे भी सामने आए हैं और सीरियन बागियों के दल भी अज़रबैजान पहुँचने के वीडियो  प्रसिद्ध किए गए हैं। तुर्की ने बीते महीने में अज़रबैजान के साथ बड़ा युद्धाभ्यास भी किया था। इस वजह से इस नए संघर्ष के पीछे तुर्की का हाथ होगा, यह बात भी समझी जा रही है। इसी बीच अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने आर्मेनिया-अज़रबैजान के संघर्ष में मध्यस्थता करने की तैयारी दिखाई है।

इससे पहले वर्ष १९९१ से १९९४ के दौरान हुए आर्मेनिया-अज़रबैजान की जंग में लगभग ३० हज़ार लोग मारे गए थे। इसके बाद वर्ष २०१६ में हुई इन देशों की लड़ाई में २०० से अधिक लोग ढ़ेर हुए थे। इन दोनों समय युद्ध के दौरान रशिया ने मध्यस्थता की थी, फिर भी युद्धविराम के लिए समझौता करने में रशिया को कामयाबी प्राप्त नहीं हुई थी।

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