मॉस्को/अंकारा/येरेवान – मध्य एशिया के आर्मेनिया और अज़रबैजान में जारी युद्ध रोकने के लिए अमरीका, रशिया और फ्रान्स ने फिर एक बार युद्धविराम करने का आवाहन किया है। लेकिन, अज़रबैजान और इसका समर्थन करनेवाले तुर्की ने यह आवाहन ठुकराने की बात सामने आयी है और उल्टा शर्त रखना सुरू किया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बिनती तुर्की ने पहले भी ठुकराई थी। तुर्की की यह भूमिका रशियन राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन की नाराज़गी का कारण साबित हुई है और इससे आर्मेनिया-अज़रबैजान के बीच जारी युद्ध आगे रशिया और तुर्की का नया ‘प्रॉक्सी वॉर’ साबित होगा, यह इशारा विश्लेषकों ने दिया है।
बीते १० दिन मध्य एशिया के आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच जोरदार युद्ध शुरू है। इस युद्ध में सैंकड़ों लोग मारे गए हैं और इसमें दोनों देशों के सैनिकों का भी समावेश है। दोनों देशों ने अपनी अपनी सीमाओं पर बड़ी मात्रा में लष्करी जमावड़ा किया है और ड्रोन्स, लड़ाकू विमान, मिसाइल और टैंक के माध्यम से जोरदार हमले हो रहे हैं। युद्ध में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने पाबंदी लगाए क्लस्टर बम्स का इस्तेमाल होने की जानकारी भी सामने आयी है। आर्मेनिया का नियंत्रण होनेवाले नागोर्नो-कैराबख के कुछ गांवों पर कब्ज़ा करने का दावा भी अज़रबैजान ने किया है।
यह युद्ध अधिक से अधिक बढ़ रहा है तभी जागतिक स्तर के प्रमुख देशों का इसमें देखा गया समावेश ध्यान आकर्षित करनेवाला साबित हो रहा है। युद्ध शुरू होने के पहले दिन से तुर्की ने इस युद्ध में अज़रबैजान के समर्थन में खड़े होने की भूमिका अपनाई है। तुर्की ने अज़रबैजान में बड़ी मात्रा में आतंकी एवं हथियार भेज़ने की बात भी सामने आयी है। अज़रबैजान में तुर्की वंश के नागरिक होने से उसकी सहायता करना अपनी ज़िम्मेदारी होने का दावा तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन ने किया है। यह निर्णय करनेवाले तुर्की ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ठुकराने की अडियल भूमिका भी अपनाई है। तुर्की की यह नीति रशिया को बड़ा नाराज़ करनेवाली साबित हुई है, ऐसे दावे रशियन विश्लेषक एवं सूत्र कर रहे हैं।
आर्मेनिया और अज़रबैजान यह दोनों देश एक समय पर सोवियत युनियन का हिस्सा थे। वर्ष १९९१ में विघटन के बाद यह देश आज़ाद हुए हों फिर भी रशिया इन देशों में अपना प्रभाव अभी भी बनाए हुए है। इससे पहले वर्ष १९८८ में इन दोनों देशों का शुरू हुआ युद्ध रशिया की मध्यस्थता से बंद हुआ था। आर्मेनिया और अज़रबैजान इन दोनों देशों के साथ रशिया के संबंध बड़े अच्छे हैं और उनके बीच बीते ढ़ाई दशकों में हुए छोटे-बड़े संघर्ष रशिया ने अपने प्रभाव से ख़त्म किए हैं। एक समय पर रशियन संघराज्य का हिस्सा रहे इन देशों में विवाद होने पर रशिया की भूमिका निर्णायक रहेगी, यह विश्वास रशिया के राष्ट्राध्यक्ष पुतिन रखते हैं। इसी मुद्दे पर उन्होंने बीते दशक से अमरीका और यूरोपिय देशों के साथ खुलेआम संघर्ष करने की बात भी दिखाई पड़ी है।
बीते कुछ वर्षों में रशिया के तुर्की से साथ जारी संबंध संमिश्र तरीके के रहे हैं। रशिया से हथियार और र्इंधन खरीद कर रहा तुर्की, सीरिया और लीबिया में रशिया के हितसंबंधों के विरोध में खड़ा हुआ है। फिर भी रशिया ने अब तक अन्य मुद्दों पर तुर्की के साथ सहयोग जारी रखा है। लेकिन, आर्मेनिया-अज़रबैजान युद्ध में तुर्की की भूमिका पुतिन की सहनशीलता की कसौटी लेनेवाली साबित हो रही है और वह खुलेआम तुर्की और उसके हितसंबंधों के विरोध में संघर्ष करने का निर्णय कर सकते हैं, यह इशारा विश्लेषक दे रहे हैं। इसी से रशिया और तुर्की के बीच नया ‘प्रॉक्सी वॉर’ भड़कने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं और यही संघर्ष दोनों देशों के लिए निर्णायक साबित होगा, ऐसा भी कहा जा रहा है।
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