बर्लिन/बीजिंग – चीन बड़ी शातिरता से यूरोप समेत एशिया और अफ्रिकी महाद्विप में अपना प्रभाव बढ़ाने की गतिविधियां करने में जुटा है। चीन फिलहाल पूरे विश्व पर वर्चस्व स्थापित करने के काफी करीब जा पहुँचा है। चीन का यह खतरा यूरोपिय देशों ने समय पर ही पहचानना होगा, ऐसा इशारा जर्मनी के पूर्व गुप्तचर प्रमुख गेरहार्ड शिंडलर ने दिया है। जर्मनी की चान्सेलर एंजेला मर्केल ने कुछ दिन पहले ही जर्मन कंपनियों को चीन से बाहर निकलने की सलाह दी थी। तभी जर्मनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने यह इशारा दिया था कि, चीन के विरोध में जारी शीत युद्ध में यूरोप को अमरीका का साथ देना अहम होगा।
कोरोना की महामारी के साथ अन्य मुद्दों पर यूरोप और चीन के बीच लगातार तनाव बढ़ रहा है और यूरोपिय महासंघ ने चीन को लगातार फटकार भी लगाई है। लेकिन, चीन की विस्तारवादी हरकतें और अड़ियल भूमिका अब भी बरकरार हैं और यूरोपिय महासंघ में दरार निर्माण करने के साथ व्यापारी हितसंबंधों का दबाव बनाने की कोशिश भी जारी हैं। अपने विरोध में आलोचना कर रहे यूरोपिय नेता एवं अधिकारियों पर चीन शीत युद्ध के दौरान की मानसिकता एवं वसाहतवाद का नज़रिया अपनाने के आरोप कर रहा है। चीन में कार्यरत यूरोपिय अधिकारी एवं कंपनियों को धमकाने की घटनाएं भी सामने आयी हैं। ‘५-जी’ तकनीक के माध्यम से चीन ने यूरोपिय संपर्क यंत्रणा पर कब्ज़ा करने की कोशिश शुरू की है, यह आरोप भी किया जा रहा है।
इस पृष्ठभूमि पर बीते कुछ महीनों में यूरोपिय देशों के प्रमुख नेता एवं अधिकारी चीन के विरोध में आक्रामक भूमिका अपनाते दिख रहे है। जर्मनी के पूर्व प्रमुख का इशारा भी इसी का हिस्सा बनता है। गेरहार्ड शिंडलर ने इस बार ‘५-जी’ क्षेत्र में चीनी कंपनियों से बन रहे खतरे की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है। हुवेई कंपनी ‘५-जी’ नेटवर्क में खुफिया तरीके से जानकारी प्राप्त करने का मार्ग बना सकती है। वह पुख्ता क्या कर रही है, इसकी हमें भनक तक नहीं लगेगी। ऐसा भी समय बन सकता है कि, जब जर्मनी संकट में होगा और चीनी कंपनियां धमकाकर अपनी पूरी यंत्रणा बंद करेगी। जर्मनी कोई निर्णय करे, इसके लिए इस तरह से दबाव बनाया जा सकता है, इस बात का अहसास रखें, इन शब्दों में जर्मनी के पूर्व गुप्तचर प्रमुख ने चीन की हरकतों पर इशारा दिया है।
जर्मन सरकार ने चीन पर बनी निर्भरता कम करना आवश्यक है और हुवेई जैसी कंपनी पर पाबंदी लगाना इसमें अहम कदम साबित हो सकता है, यह दावा भी शिंडलर ने किया। सभी मुद्दों का विचार व्यापारी नज़रिये से करना संभव नहीं है, ऐसी सख्त सलाह भी उन्होंने प्रदान की। चीन के बढ़ते वर्चस्ववाद का मुद्दा पेश करते समय साउथ चायना सी में जारी चीन की आक्रामक गतिविधियों की ओर अनदेखा करना संभव नहीं है, इस बात का अहसास भी जर्मनी के पूर्व गुप्तचर प्रमुख ने कराया है। शिंडलर वर्ष २०११ से २०१६ के दौरान जर्मन गुप्तचर यंत्रणा के प्रमुख रहे हैं। इसी दौरान जर्मन चान्सेलर मर्केल ने चीन के साथ संबंध अधिक मज़बूत करके व्यापार बढ़ाने के लिए पहल की थी। इस वजह से उस समय गुप्तचर यंत्रणा की ज़िम्मेदारी संभालनेवाले अधिकारी चीन को लेकर दिया खतरे का इशारा अहम साबित होता है।
बीते कुछ महीनों में जर्मनी ने हाँगकाँग, उइगरवंशी एवं व्यापार के मुद्दे पर चीन को लगातार लक्ष्य किया है। बीते महीने में ही जर्मनी के विदेशमंत्री हैको मास ने तैवान के मुद्दे पर भी चीनी मंत्री को वार्तापरिषद में ही खुलेआम फटकार लगाई थी। कुछ दिन पहले जर्मनी ने चीन की गतिविधियों पर नाराज़गी व्यक्त करके इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए स्वतंत्र नीति का ऐलान किया था। जर्मनी, यूरोप का प्रमुख देश है और फिलहाल यूरोपिय महासंघ का अध्यक्षपद भी जर्मनी के हाथों में है। इस पृष्ठभूमि पर जर्मन नेतृत्व एवं अधिकारियों के दायरे से चीन के विरोध में अपनाई जा रही आक्रामक भूमिका अहमियत रखती है। अमरीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख देशों के साथ चीन के संबंध पहले ही तनाव से भरे हुए हैं और तभी यूरोप से लगनेवाला संभावित झटका चीन की महत्वाकांक्षा मिट्टी में मिला सकता है।
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