तैपेई/बीजिंग – चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने दो साल पहले, तैवान पर कब्ज़ा करने के लिए लष्करी कार्रवाई का विकल्प भी खुला है, ऐसा घोषित किया था। जिनपिंग की इस घोषणा के बाद अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने तैवान को की जानेवाली शस्त्रसहायता में भारी बढ़ोतरी करके, लड़ाक़ू विमान, क्षेपणास्त्र तथा प्रगत यंत्रणा देने के समझौतों का सिलसिला ही चालू किया था। लेकिन अगले महीने में ज्यो बायडेन ने बागड़ोर सँभालने के बाद क्या यह नीति क़ायम रहेगी, ऐसी शंकाएँ उपस्थित की जा रहीं हैं। वहीं, दूसरी ओर ट्रम्प के फ़ैसलों से बौखला गये चीन ने तैवान पर ज़बरदस्त दबाव लाने की शुरुआत की है। इस पृष्ठभूमि पर, चीन को रोकने के लिए तैवान परमाणुअस्त्रसिद्ध होने का विकल्प अपना सकता है, ऐसा दावा ऑस्ट्रेलियन अभ्यासगुट के विश्लेषकों ने किया है।
‘द ऑस्ट्रेलियन स्ट्रॅटेजिक पॉलिसी इन्स्टिट्यूट’ (एएसपीआय) के ऍलेक्स लिटिलफिल्ड एवं ऍडम लोथर ने, ‘द स्ट्रॅटेजिस्ट’ इस वेबसाईट पर लिखे लेख में तैवान के परमाणुअस्त्रसिद्ध होने की संभावना जताई है। अमरिकी विश्लेषक मायकल पिल्सबरी ने, चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट हुक़ूमत के सामने सन २०४९ तक हाँगकाँग और तैवान को पुन: चीन का हिस्सा बनाने का लक्ष्य है, ऐसा कहा था। उसका उल्लेख करके लिटिलफिल्ड एवं लोथर ने चीन की वर्तमान आक्रामक हरक़तों की ओर ग़ौर फ़रमाया है। उसी समय, अमरीका में बायडेन सत्ता में आने के बाद, चीन के संदर्भ में अपनायी जानेवाली नीति में होनेवाले संभाव्य बदलावों का एहसास भी कराया।
‘बायडेन राष्ट्राध्यक्ष बनने के बाद, अमरीका की चीन के संदर्भ में नीति डोनाल्ड ट्रम्प की तरह आक्रामक नहीं होगी। तैवान के संदर्भ में अमरीका की नीति में जो संदिग्धता है, उसे बायडेन आगे भी क़ायम रखेंगे। ज्यो बायडेन चीन से मेल बिठाने का और सलाहमशवरा करके आगे जाने का मार्ग अपना सकते हैं। उसकी इस भूमिका का यक़ीन होनेवाला चीन, तैवान पर दबाव अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए गतिविधियाँ जारी रखेगा। चीन की ये गतिविधियाँ और अमरीका के ठोंस सहयोग के बारे में होनेवाली अनिश्चितता, इस कारण तैवान के नेतृत्व को आजादी बचाकर रखने के लिए आत्यंतिक कदम उठाने की तैयारी रखनी होगी’, ऐसा दावा ‘द स्ट्रॅटेजिस्ट’ के विश्लेषकों ने किया है।
इस्रायल का अनुसरण करके तैवान अपना गोपनीय परमाणुकार्यक्रम फिर एक बार चालू कर सकता है और तेज़ी से परमाणुअस्त्र निर्माण करने के लिए ‘जापान ऑप्शन’ का आधार ले सकता है, ऐसा लिटिलफिल्ड एवं लोथर ने कहा है। इससे पहले सन १९६७ में और फिर १९८० के दशक में तैवान ने आक्रामकता से परमाणुकार्यक्रम चलाया था, इसपर इन विश्लेषकों ने ग़ौर फ़रमाया। १९७० के दशक में तैवान ने अपने परमाणुकार्यक्रम के तहत ‘वेपन्स ग्रेड प्लुटोनियम’ का निर्माण करने में क़ामयाबी हासिल की थी और सफल रूप में ‘न्यूक्लिअर रिऍक्शन’ भी कराया था, इसकी याद लेख में करा दी गयी है। दोनों बार अमरीका का दबाव और चीन की हुक़ूमत ने बदली हुई नीति, ये घटक तैवान का परमाणुकार्यक्रम बंद करने का कारण बने, यह भी नमूद किया गया है।
यदि तैवान के पास परमाणु हथियार आ गए, तो चीन की हुक़ूमत के लिए आक्रमण के विकल्प का इस्तेमाल करना अधिक मुश्किल होगा, ऐसा दावा विश्लेषकों ने किया। चिनी नीति के अमरिकी अभ्यासक और विश्लेषक. तैवान की परमाणुअस्त्रसिद्धता की संभावना को ख़ारिज कर सकते हैं। इसका कारण, उन्हें चीन द्वारा तैवान पर डाले जानेवाले ज़बरदस्त दबाव का एहसास नहीं होना, यह हो सकता है, ऐसा भी लिटिलफिल्ड तथा लोथर ने कहा है। चीन की हुक़ूमत ने हाँगकाँग पर की कार्रवाई की पृष्ठभूमि पर तैवानी जनता में चीन के खिलाफ़ तीव्र असंतोष की भावना है। इसलिए तैवान का नेतृत्व, अमरीका के साथ अथवा अमरीका के बिना, अपनी आज़ादी को बरक़रार रखने के लिए कोई भी कदम उठा सकता है, ऐसी चेतावनी ‘द स्ट्रॅटेजिस्ट’ के लेख में दी गयी है।
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