वॉशिंग्टन/तैपेई – अमरीका और ताइवान के बीच राजनीतिक सहयोग पर लगाये गए निर्बंध अमरीका द्वारा हटाये गये हैं। अमरीका के विदेशमंत्री माईक पॉम्पिओ ने यह घोषणा की। दो ही दिन पहले अमरीका ने यह ऐलान किया था कि उनकी संयुक्त राष्ट्रसंघ में नियुक्त दूत ताइवान का दौरा करेंगी। उसके बाद हुई यह घोषणा यानी ताइवान के मुद्दे पर चीन को दिया दूसरा झटका साबित हुआ है। पॉम्पिओ की घोषणा के बाद हालाँकि चीन ने अधिकृत प्रतिक्रिया नहीं दी है, फिर भी चिनी प्रसारमाध्यमों ने अमरीका पर आलोचना की बौछार की है।
‘सुदृढ़ जनतंत्र और अमरीका का विश्वसनीय साझेदार यह पहचान होनेवाले ताइवान पर अमरिकी विदेश विभाग ने इससे पहले कई पेचींदा निर्बंध थोंपे थे। अमरीका के राजनीतिक, लष्करी और प्रशासकीय अधिकारियों के ताइवान से होनेवाले संबंध नियंत्रित कर दिये गये थे। चीन की कम्युनिस्ट हुक़ूमत को खूश करने के लिए अमरीका ने ये इकतरफ़ा फ़ैसलें किये थे। लेकिन अब इसके बाद यह नियंत्रण नहीं होगा’, इन शब्दों में अमरिकी विदेशमंत्री माईक पॉम्पिओ ने, ताइवान पर लगाये राजनीतिक निर्बंध हटाने की घोषणा की। अमरीका-ताइवान संबंधों को लेकर विदेश विभाग ने इससे पहले जारी किये मार्गदर्शक तत्त्व ख़ारिज कर दिये जाते हैं, ऐसा भी विदेशमंत्री पॉम्पिओ ने स्पष्ट किया।
पिछले ७२ घंटों में अमरीका ने ताइवान के मुद्दे पर चीन को दिया यह दूसरा बड़ा झटका साबित होता है। गुरुवार को अमरीका के ‘युएन मिशन’ ने, दूत केली क्राफ्ट अगले हफ़्ते ताइवान का दौरा करेंगी, ऐसा घोषित किया था। अपने दौरे में, अमरिकी दूत ताइवान के वरिष्ठ नेताओं से तथा अधिकारियों से मुलाक़ात करेंगी और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा करेंगी, ऐसा भी कहा गया। गत छ: महीनों में तीसरी बार अमरीका के किसी वरिष्ठ राजनीतिक अधिकारी ने ताइवान का अधिकृत दौरा किया है। क्राफ्ट से पहले अमरीका के स्वास्थ्यमंत्री अलेक्स अझार और विदेश विभाग के अधिकारी केथ क्रॅक ने ताइवान की भेंट की थी।
दो महीने पहले विदेशमंत्री माईक पॉम्पिओ ने, ताइवान यह चीन की भाग नहीं, ऐसा बयान करके सनसनी फ़ैलायी थी। पॉम्पिओ के इस बयान से यह चित्र सामने आया था कि अमरीका ने चीन की ‘वन चायना पॉलिसी’ खुले आम ठुकरायी है। विदेशमंत्री के इस बयान से पहले भी, अमरीका ताइवान के मुद्दे पर आक्रामक हुई होने के स्पष्ट संकेत मिले थे। अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने, ताइवान के साथ सहयोग करने के मुद्दे पर अधिक सक्रिय भूमिका अपनायी थी।
अमरीका ने ताइवान में शुरू किया राजनीतिक कार्यालय, अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने की हुई ताइवान के नेताओं से भेंट और बढ़ता रक्षा सहयोग ये बातें ट्रम्प की भूमिका का भाग मानीं जातीं हैं। राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प ने, पूरे तीन दशकों की कालावधि के बाद ताइवान को लड़ाक़ू विमानों की सप्लाई करने का ऐतिहासिक फ़ैसला किया था। अमरीका ने ताइवान के नज़दीकी सागरी क्षेत्र में तैनाती भी बढ़ायी होकर, विमानवाहक युद्धपोतों समेत विध्वंसक, ड्रोन्स, टोह विमान और लड़ाक़ू विमान इनकी आवाजाही बढ़ायी थी। पिछले ही महीने राष्ट्राध्यक्ष ट्रम्प ने ‘ताइवान ऍश्युरन्स ऍक्ट’ पर हस्ताक्षर भी किये थे।
अमरीका से एक के बाद एक आ रहे इन फ़ैसलों के कारण चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट हुक़ूमत अच्छीख़ासी बौखलायी है। ताइवान का मसला हमेशा के लिए सुलझाने हेतु, उसपर ठेंठ आक्रमण करके कब्ज़ा करें, ऐसे आक्रामक मशवरें चीन के लष्करी अधिकारियों से दिये जा रहे हैं। इसके लिए चीन ने बड़े पैमाने पर रक्षा तैनाती की होने की बात भी सामने आयी है। चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने भी चिनी लष्कर को ताइवान युद्ध के लिए तैयार रहने के आदेश दिये थे। इस पृष्ठभूमि पर, अमरीका ने ताइवान मुद्दे को लेकर चीन के खिलाफ़ शुरू किये राजनीतिक संघर्ष की धार अधिक ही तेज़ की हुई दिख रही है।
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