वॉशिंग्टन – इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में की गई तैनाती अमरीका बरकरार रखेगी। यह तैनाती इस क्षेत्र के संघर्ष के लिए नहीं है, बल्कि संघर्ष टालने के लिए है। ऐसा ऐलान अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष ज्यो बायडेन ने किया। चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग को हमने अमरीका की इस नीति की पूरी जानकारी प्रदान की है, यह बात बायडेन ने स्पष्ट की। अमरीका को चीन या रशिया के साथ संघर्ष शुरू नहीं करना है, लेकिन, अमरीका अपने हितों की रक्षा किए बगैर नहीं रहेगी, यह बयान भी राष्ट्राध्यक्ष बायडेन ने किया है।
अमरिकी संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते समय राष्ट्राध्यक्ष बायडेन ने यह भूमिका रखी। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमरीका की लष्करी तैनाती आगे भी बरकरार रखी जाएगी। लेकिन, यह तैनाती संघर्ष के लिए नहीं है, बल्कि संघर्ष टालने के लिए रहेगी। जैसे यूरोप में नाटो के साथ की गई अमरिकी सेना की तैनाती संघर्ष टालने के लिए है, वैसी ही भूमिका अमरीका ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को लेकर अपनाई है, यह दावा राष्ट्राध्यक्ष बायडेन ने किया। चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग के साथ हुई बातचीत के दौरान हमने उन्हें इस भूमिका की जानकारी प्रदान की है, यह बात भी बायडेन ने स्पष्ट की।
चीन और रशिया देशों के साथ अमरीका को संघर्ष की उम्मीद नहीं है। लेकिन, अपने हितों की सुरक्षा के लिए अमरीका उचित होगा वही निर्णय करेगी, ऐसा बायडेन ने कहा है। अमरीका स्पर्धात्मकता में विश्वास रखती है और चीन के साथ स्पर्धा का अमरीका स्वागत करेगी। लेकिन, सरकारी अनुदान पर उद्योगों को बढ़ाकर उसके ज़रिये अमरिकी कामगारों का रोजगार और अमरिकी बुद्धिसंपदा की चोरी करके तकनीक प्राप्त करने का चीन का गलत कारोबार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, ऐसा इशारा राष्ट्राध्यक्ष बायडेन ने दिया। साथ ही मानव अधिकारों के हनन को अमरीका नजरअंदाज नहीं करेगी, यह इशारा भी राष्ट्राध्यक्ष बायडेन ने दिया।
अमरिकी संसद के दोनों सदनों को पहली बार संबोधित करते हुए राष्ट्राध्यक्ष बायडेन ने चीन और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के मुद्दे पर किए बयान को अंतरराष्ट्रीय वृत्तसंस्थाओं ने बड़ी अहमियत दी है। बायडेन अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष होने के बाद चीन की आक्रामकता में भारी बढ़ोतरी होने की बात सामने आ रही है। डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्राध्यक्ष होते हुए अमरीका की प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं होगी, इसे ध्यान में रखकर चीन गतिविधियाँ कर रहा था। लेकिन, बायडेन के राष्ट्राध्यक्ष होने के बाद चीन ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी वर्चस्व वाली हरकतें तेज़ की हैं।
म्यांमार का लष्करी विद्रोह, फिलिपाईन्स समुद्री क्षेत्र में अतिक्रमण एवं तैवान की सीमा में घुसपैठ चीन की बढ़ती आक्रामकता और विस्तारवादी नीति के परिणाम हैं। राष्ट्राध्यक्ष बायडेन हमारे खिलाफ सख्त भूमिका अपनाकर कड़ी कार्रवाई नहीं करेंगे, यह भरोसा होने के कारण ही चीन बेलगाम हुआ है, ऐसा बयान बायडेन के आलोचक कर रहे हैं। इस वजह से अमरीका के हितों को खतरा निर्माण हुआ है और बायडेन ने ऐसी ही नरमाई की नीति बरकरार रखी तो अमरीका के सहयोगी देश असुरक्षित हो जाएँगे, ऐसा इशारा विपक्षी नेता दे रहे हैं।
इन आपत्तियों पर जवाब देने के लिए बायडेन ने कुछ हफ्ते पहले भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों के साथ ‘क्वाड’ की बैठक का आयोजन किया था। अब अमरिकी संसद के दोनों सदनों को आश्वस्त करके राष्ट्राध्यक्ष बायडेन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमरिकी तैनाती कायम रखेंगे, यह इशारा चीन को दे रहे हैं, ऐसा आरोप लगाया जा रहा है। साथ ही हम चीन समर्थक या चीन को लेकर नरम भूमिका अपनानेवाले नहीं हैं, यह दिखाने की कोशिश भी राष्ट्राध्यक्ष बायडेन कर रहे हैं। लेकिन, बायडेन के चीन विरोधी बयानों पर भरोसा करना मुमकिन नहीं है। ऊपर से तो वे चीन की कड़ी आलोचना जरूर करेंगे और चीन के खिलाफ कार्रवाई करने का चित्र भी दिखाएँगे. लेकिन, वास्तव में वे चीन के विरोध में कार्रवाई नहीं करेंगे, बल्कि चीन को अप्रत्यक्ष लाभ पहुँचानेवाली नीति ही अपनाएँगे, ऐसा आरोप कुछ विश्लेषक लगा रहे हैं।
बराक ओबामा अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष थे तब उन्होंने भी ऐसी ही नीति अपनाकर चीन को अपना प्रभाव और वर्चस्व बढ़ाने का अवसर प्रदान किया था। ओबामा के राष्ट्राध्यक्षीय कार्यकाल में बायडेन अमरीका के उपराष्ट्राध्यक्ष थे, यह याद भी विश्लेषक दिला रहे हैं।
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