तिब्बत का सांस्कृतिक वंशसंहार करानेवाले चीन को रोकने के लिए ‘यूएन’ का अधिवेशन बुलाइए – भारतस्थित निर्वासित तिब्बती सरकार की माँग

तिब्बत का सांस्कृतिक वंशसंहार करानेवाले चीन को रोकने के लिए ‘यूएन’ का अधिवेशन बुलाइए – भारतस्थित निर्वासित तिब्बती सरकार की माँग

धरमशाला/जीनिव्हा – चीन की सत्ताधारी हुक़ूमत तिब्बत में सांस्कृतिक वंशसंहार करा रही है। तिब्बत के साथ ही अन्य भागों में भी, इस हुक़ूमत द्वारा जारी मानवाधिकारों का गला घोटने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्रसंघ विशेष अधिवेशन बुलायें, ऐसी माँग भारतस्थित निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रमुख डॉ. लॉबसांग सांगेय ने की। पिछले कुछ दिनों में कोरोना महामारी, हाँगकाँग, साऊथ चायना सी तथा भारत पर का हमला, इन मुद्दों को लेकर चीन की हुक़ूमत बहुत ही मुश्किल में फ़ँसी है। ऐसी स्थिति में, तिब्बत तथा झिंजियांग समेत, चीन के मानवाधिकारों का मुद्दा आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थित होना, कम्युनिस्ट हुक़ूमत का सिरदर्द बढ़ानेवाला साबित हो सकता है।

अमरीका ने चीन के ख़िलाफ़ शुरू किया व्यापक राजनीतिक संघर्ष और भारत-चीन सीमाविवाद, इस पृष्ठभूमि पर तिब्बत का मुद्दा फिर एक बार चर्चा में आया है। पिछले ही महीने में अमरीका के संसद सदस्य पेरी ने, अमरीका तिब्बत को ‘स्वतंत्र राष्ट्र’ घोषित करें, ऐसी माँग करनेवाला विधेयक प्रस्तुत किया था। उसके पीछे पीछे, ‘तिबेटियन युथ काँग्रेस’ इस संगठन ने, तिब्बत को भारत और चीन के बीच का स्वतंत्र ‘बफर स्टेट’ घोषित करें, इसके लिए मुहिम भी शुरू की थी। अब भारतस्थित निर्वासित तिब्बती सरकार ने, तिब्बत के साथ अन्य मुद्दों को लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ के अधिवेशन की माँग करके, चीन की हुक़ूमत पर का दबाव अधिक ही बढ़ाने की कोशिश की दिख रही है।

निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रमुख डॉ. लॉबसांग सांगेय ने एक निवेदन जारी कर अपनी माँग रखी है। ‘संयुक्त राष्ट्रसंघ का हिस्सा होनेवाले लगभग ५० विशेषज्ञों ने, चीन में मानवाधिकार और मूलभूत आज़ादी इन मुद्दों पर निर्णायक कदम उठाने का आवाहन किया था। इसमें तिब्बत समेत झिंजियांग तथा हाँगकाँग का उल्लेख है। पिछले छ: दशकों से चीन की तानाशाही हुक़ूमत, तिब्बत में निवास करनेवाले तिब्बतियों पर अनन्वित अत्याचार कर रही है। तिब्बती नागरिकों की स्वतंत्र पहचान छीन लेनेवाला दमनतंत्र यानी चीन की हुक़ूमत द्वारा जारी रहनेवाला सांस्कृतिक वंशसंहार ही है, इसपर ग़ौर करना चाहिए’, ऐसे शब्दों में डॉ. लॉबसांग सांगेय ने तिब्बत मुद्दे पर आंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ग़ौर फ़रमाया।

चीन की हुक़ूमत जब सालोंसाल तिब्बत में मानवताविरोधी ख़ूँख़्वार अपराध कर रही थी, तब दुनिया ने उसकी ओर उचित ध्यान नहीं दिया। इसी कारण बेख़ौफ़ हुआ चीन आज झिंजियांग तथा हाँगकाँग में खुले आम मानवाधिकारों का गला घोंट रहा है, ऐसा दावा डॉ. लॉबसांग सांगेय ने किया। इसलिए अब चीन को आंतर्राष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन और मानवाधिकारों का गला घोटने के लिए ज़िम्मेदार क़रार देने की घड़ी आयी है, ऐसी आग्रही माँग निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रमुख डॉ. लॉबसांग सांगेय ने की।

अमरीका को झटका देकर जागतिक महासत्ता बनने की महत्त्वाकांक्षा रखनेवाले चीन के ख़िलाफ़ फिलहाल आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचंड ग़ुस्सा है। इससे पहले विभिन्न मुद्दों पर चीन का साथ देनेवाले युरोपीय तथा अफ्रिकी देश भी, संयुक्त राष्ट्रसंघ समेत अन्य जागतिक यंत्रणाओं में चीन को पूर्ण समर्थन देने के लिए तैयार नहीं हैं। इस पृष्ठभूमि पर, संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे प्रमुख जागतिक संगठन में तिब्बत, झिंजियांग तथा हाँगकाँग इन मुद्दों पर चीन के विरोध में यदि प्रस्ताव रखा गया, तो वह चीन के सत्ताधारियों के लिए बहुत बड़ी बेइज्ज़ती साबित हो सकती है।

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