रोम – दुनिया के करीबन २०० करोड लोगों को भीषण सुखें, अनाज की कमी, भूखमरी और कुपोषण की चपेट में होने का दावा संयुक्त राष्ट्रसंघ ने किया है| वर्ष २०१५ से अनाज की कमी और भूखमरी का सामना कर रहें लोगों में लगातार बढोतरी हो रही है और इनकी संख्या ८२ करोड होने का एसहास संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अपने अहवाल से दिलाया| यह स्थिति बरकरार रही तो वर्ष २०३० तक ‘झीरो हंगर’ का उद्देश्य पूरा होने में कठिनाई होगी, यह चिंता इस अहवाल में व्यक्त की गई है|
संयुक्त राष्ट्रसंघ की ‘फूड ऍण्ड एग्रिकल्चर असोसिएशन’ (एफएओ) ने अन्य यंत्रणाओं की सहायता से वर्ष २०१८ की भीषण स्थिति रखनेवाला अहवाल सोमवार के दिन प्रसिद्ध किया| ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्युरिटी ऍण्ड न्युट्रिशन इन द वर्ल्ड’ नाम से प्रसिद्ध किए गए इस अहवाल में जरूरी अन्न की प्राप्ति ना होनेवाले लोगों की संख्या लगातार बढ रही है, यह एहसास दिलाया है| साथ ही दुनिया में हर एक महाद्विप और क्षेत्रों में मोटापन और ज्यादा वजन की समस्या से झुज रहे लोगों की संख्या में भी बढोतरी होने की विरोधी स्थिति इस रपट के माध्यम से दिखाई गई है|
‘दुनिया से दरिद्रता दूर करने के लिए हो रही कोशिशों में गरीब से गरीब जनता को अन्नसुरक्षा और संतुलित आहार कैसे प्राप्त होगा, इन मुद्दों का भी समावेश करना जरूरी है| इसके लिए नीति में बडे बदलावों की जरूरत है| साथ ही मुमकिन आर्थिक संकट पर जीत हासिल करने के लिए सामाजिक और आर्थिक नीति का प्लैन पहले ही होना जरूरी है| यह करते समय आरोग्य और शिक्षा जैसी जरूरी बात का ध्यान रखना होगा’, इन शब्दों में अन्न की कमी और भूखमरी से दूर रहने के लिए सुझाव दिए गए है|
आर्थिक विकास में पीछे रह चुके और संपत्ती को लेकर विषम वितरण होनेवाले देशों में भूखमरी, अन्न की कमी और कुपोषण की मात्रा बढ रही है, इस सच्चाई की ओर संयुक्त राष्ट्रसंघ के अहवाल में ध्यान आकर्षित किया गया है| अन्न की कमी और भूखमरी का सबसे अधिक झटका एशिया महाद्विप को लगा है और इस क्षेत्र में ५१ करोड से अधिक लोगों को नियमित अन्न की कमी का सामना करना पड रहा है| अफ्रीका महाद्विप में २५ करोड से अधिक जनता को जरूरी अन्न की प्राप्ती नही मिल नही रहा है और लैटिन अमरिका में चार करोड से अधिक लोग भुखें रहने के लिए विवश है|
दुनिया में शुरू संघर्ष, बढती अस्थिरता, मौसम में हो रहा बदलाव एवं अर्थव्यवस्था में देखी जा रही मंदी की स्थिति अनाज की कमी और भूखमरी जैसी समस्याओं पर असर करनेवाले घटक होने का जिक्र संयुक्त राष्ट्रसंघ की रपट में किया गया है|
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