चीन, रशिया के हायपरसोनिक क्षेपणास्त्र युरोप की सुरक्षा के लिए दु:स्वप्न साबित होंगे – जर्मन अख़बार का दावा

चीन, रशिया के हायपरसोनिक क्षेपणास्त्र युरोप की सुरक्षा के लिए दु:स्वप्न साबित होंगे – जर्मन अख़बार का दावा

बर्लिन – रशिया और चीन के पास होनेवाली हायपरसोनिक क्षेपणास्त्रों की राशि यह युरोपिय देशों की सुरक्षा के लिए दु:स्वप्न साबित होगी। इन हायपरसोनिक क्षेपणास्त्रों के कारण, युरोप की सुरक्षा के लिए होनेवाले ख़तरों का चक्र शुरू हुआ है, ऐसी चिंता जर्मन अख़बार ने ज़ाहिर की। रशिया के पास हायपरसोनिक क्षेपणास्त्रों को नष्ट करनेवाली ‘एस-५००’ यह हवाई सुरक्षा यंत्रणा भी है। इस कारण, अन्य देश हालाँकि हायपरसोनिक क्षेपणास्त्रों से लैस हुए, तो भी रशिया का कुछ भी नहीं बिगड़ सकता, ऐसा दावा इस अख़बार ने किया।

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दस दिन पहले रशिया ने, अपनी परमाणु पनडुब्बी से चार आन्तर्महाद्वीपिय क्षेपणास्त्रों का परीक्षण किया होने की बात ज़ाहिर की थी। पैसिफिक महासागर से प्रक्षेपित किये इन क्षेपणास्त्रों ने रशिया के वायव्य की ओर का लक्ष्य सटीकता से छेदा था। इन आन्तर्महाद्वीपिय क्षेपणास्त्रों के परीक्षण के कारण, जर्मनीस्थित अमरीका के लष्करी अड्डों पर अलर्ट जारी किया गया था। जर्मनी के ‘डाई वेल्ट’ इस अख़बार ने इस घटना की दखल ली थी। साथ ही, इस घटना के कारण भविष्य में होनेवाले ख़तरों के बारे में युरोपिय देशों को आगाह किया था।

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आन्तर्महाद्वीपिय क्षेपणास्त्र होने के कारण अमरीका की राडार यंत्रणा ने उसे आसानी से ट्रैक किया और युरोपस्थित अपने लष्करी अड्डों को अलर्ट किया। लेकिन ये अगर रशिया के हायपरसोनिक क्षेपणास्त्र होतें, तो उन्हें राडार से ट्रैक करना और उन्हें प्रत्युत्तर देना भी मुश्किल हो जाता, इसका एहसास जर्मन अख़बार ने कराया। साथ ही, रशिया और चीन ऐसे हायपरसोनिक क्षेपणास्त्रों से लैस होने की चेतावनी जर्मन अख़बार ने दी।

इन हायपरसोनिक क्षेपणास्त्रों के कारण हवाई सुरक्षा यंत्रणाएँ तथा बैलिस्टिक क्षेपणास्त्रभेदी यंत्रणाएँ बेअसर साबित हो रहीं हैं। ऐसे क्षेपणास्त्रों के हमलों पर प्रतिसाद देना मुश्किल हुआ है, ऐसा इस अख़बार ने कहा है। ऐसे ये हायपरसोनिक क्षेपणास्त्र, आनेवाले समय में अन्य देशों की सुरक्षा के लिए चुनौती साबित होते हैं। अमरीका इस मोरचे पर रशिया और चीन से पिछड़ी होने का दावा इस अख़बार ने किया। इन हायपरसोनिक क्षेपणास्त्रों के कारण, क्षेपणास्त्रबंदी संबंधित समझौतों भी अर्थहीन हुए हैं, ऐसा इस अख़बार ने कहा है।

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