लंदन – ‘चरमपंथी ही सुरक्षा के लिए निर्माण हुआ पहला और सबसे बड़ा खतरा है। इसी के साथ चरमपंथी गुटों द्वारा जैविक हथियारों के इस्तेमाल का खतरा है और पश्चिमी देशों को इसके खिलाफ तैयार रहना पड़ेगा’, यह इशारा ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेअर ने दिया है। ब्रिटेन के प्रमुख अध्ययन मंडल में ‘९/११ के बाद के दो दशक’ विषय पर सोमवार के दिन बोलते समय टोनी ब्लेअर ने यह इशारा दिया। इस दौरान उन्होंने अफ़गानिस्तान का ज़िक्र करके आतंकवाद विरोधी लड़ाई में लष्करी तैनाती आवश्यक होने की ओर ध्यान आकर्षित किया।
ब्रिटेन की ‘रॉयल युनायटेड सर्विसस इन्स्टिट्यूट’ (रुसी) नामक अध्ययन मंड़ल ने सोमवार के दिन एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ने ९/११ के आतंकी हमले के बाद की स्थिति और खतरे के मुद्दे पर अपनी भूमिका रखी। ‘चरमपंथी विचारधारा और इससे हो रही हिंसा, आज भी सुरक्षा के लिए पहला खतरा है। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो यह खतरा हम तक पहुँच सकता है। हिंसा का केंद्र दूर होने के बावजूद इसके खतरे से बचा नहीं जा सकता, यही बात ९/११ के हमले ने दिखायी है’, ऐसा ब्लेअर ने कहा।
‘कोरोना की महामारी ने विश्व को घातक विषाणु की पहचान कराई है। जैविक आतंकवाद यह सिअर्फ विज्ञान कथाओं की कल्पना नहीं रही और सच्चाई में उतर रही है। चरमपंथी गुट इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इस खतरे के खिलाफ पश्चिमी देशों को तैयार रहना पड़ेगा’, यह इशारा ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ने इस दौरान दिया। इसी बीच ब्लेअर ने अफ़गानिस्तान के मुद्दे पर भी ध्यान आकर्षित किया।
अमरीका इसके आगे सेना तैनाती के लिए ज्यादा उत्सुक रहेगी, यह उम्मीद हमे नहीं रही। ऐसी स्थिति में ब्रिटेन को यूरोपिय देशों के साथ सहयोग बढाकर आतंकवाद के खतरे से बचने की कोशिश करनी पड़ेगी, यह सलाह भी उन्होंने दी। इस दौरान उन्होंने अफ्रीका के ‘साहेल रीजन’ में उभरे आतंकवाद के खतरे का भी ज़िक्र किया। आतंकवाद विरोधी संघर्ष के लिए लष्करी तैनाती आवश्यक घटक होने का इशारा भी ब्लेअर ने दिया। स्थानीय सेना की ही प्राथमिकता रहेगी, यह हर बार मुमकिन नहीं होगा, ऐसा कहकर उन्होंने विदेशी सेना की तैनाती का भी समर्थन किया।
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