बर्लिन – यूरोप की सबसे बड़ी और प्रमुख अर्थव्यवस्था जर्मनी को आर्थिक स्तर पर एक के बाद एक झटके लगने लगे हैं। कोरोना की महामारी की वजह से बीते वर्ष धिमी जर्मन अर्थव्यवस्था इस वर्ष मात्र २.७ प्रतिशत विकासदर प्राप्त कर सकेगी, यह अनुमान जर्मनी के प्रमुख आर्थिक विशेषज्ञों ने लगाया है। साथ ही जर्मन सरकार के पास उपलब्ध निधि की स्थिति गंभीर होने की रपट ‘फेडरल ऑडिट ऑफिस’ ने पेश की है। जर्मनी, विश्व की चौथे स्थान की अर्थव्यवस्था होने से इसे महसूस होनेवाले झटके वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी असर करनेवाले साबित हो सकते हैं, यह दावा विश्लेषक कर रहे हैं।
बीते वर्ष कोरोना की महामारी का विस्फोट होने से अर्थव्यवस्था में ४.९ प्रतिशत गिरावट आई थी। लेकिन, इस वर्ष के शुरू से वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति धीरे धीरे सामान्य होने लगी थी। इसका लाभ जर्मन अर्थव्यवस्था को भी होने के संकेत प्राप्त हुए थे। अर्थव्यवस्था सामान्य होगी, यह अनुमान विशेषज्ञ एवं विश्लेषकों ने लगाया था। लेकिन, बीते कुछ महीनों में इसे फिर से झटके लगने लगे हैं।
जर्मनी उत्पादक और निर्यातक अर्थव्यवस्था के नाम से पहचानी जाती है। वाहन, मशिनरी, रासायन, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन एवं दवाईयों का उत्पादन एवं निर्यात जर्मन अर्थव्यवस्था की रीड़ मानी जाती है। वर्ष २०१९ में जर्मनी के ‘जीडीपी’ में ४० प्रतिशत हिस्सा निर्यात का था। कोरोना की महामारी की पृष्ठभूमि पर लगाए गए ‘लॉकडाऊन’ एवं अन्य प्रतिबंधों की वजह से जर्मनी के उत्पादन और निर्यात प्रधान अर्थकारण को बड़े झटके लग रहे हैं।
जर्मनी के औद्योगिक क्षेत्र के निदेशांक ने लगातार चौथे महीने में गिरावट की जानकारी सामने आयी है। इस गिरावट के पीछे वैश्विक स्तर पर निर्माण हुए सप्लाई चेन का संकट प्रमुख कारण बताया जा रहा है। इस संकट की वजह से जर्मन कंपनियों को उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चा सामान प्राप्त होने में कठिनाई हो रही है। साथ ही तैयार सामान को उचित समय पर पहुँचाने में भी कठिनाई हो रही है।
दूसरी ओर ईंधन की कीमतें बढ़ने से बिजली महंगी हुई है। कुछ इलाकों में बिजली की किल्लत का संकट भी खड़ा हुआ है। इससे कई बड़ी जर्मन कंपनियों ने अपने युनिटस् बंद करना शुरू किया है। कच्चे सामान की आपूर्ति एवं बिजली की किल्लत की वजह से ऑर्डर्स पूरे करना मुमकिन ना होने की नाराज़गी उद्यमी जता रहे हैं। दोहरे संकट का उत्पादन पर असर हो रहा है और इसी दौरान कोरोना का विस्फोट तीव्र होने की बात बीते कुछ हफ्तों में सामने आयी है। इसका असर अंदरुनि माँग पर होने का ड़र भी जताया गया है।
कुछ आर्थिक विशेषज्ञ एवं माध्यमों ने जर्मनी को ‘बॉटलनेक रिसिशन’ नुकसान पहुँचा सकता है, यह अनुमान व्यक्त किया है। जर्मन अर्थव्यवस्था को लेकर सामने आ रही अन्य जानकारी भी इसकी पुष्टी करनेवाली साबित हो रही है। जर्मनी के ‘फेडरल ऑडिट ऑफिस’ ने जारी की हुई नई रपट में सरकार के पास उपलब्ध निधि की स्थिति गंभीर होने का बयान दर्ज़ किया है। सरकार के पास उपलब्ध निधि की मात्रा उचित स्तर पर लाने के लिए अगली सरकार को तुरंत उपाय करना पड़ेगा, यह सलाह ‘फेडरल ऑडिट ऑफिस’ ने दी है।
यही स्थिति बनी रही तो इस वर्ष जर्मनी को पिछड़ी हुई यूरोपिय अर्थव्यवस्था यह कहा जा सकता है, यह दावा होल्गर श्मिडिंग नामक आर्थिक विशेषज्ञों ने किया है। ‘ऑक्सफर्ड इकॉनॉमिक्स’ के ऑलिविर रकाव ने जर्मन अर्थव्यवस्था की मंदी के पीछे कोरोना की महामारी अहम घटक होने का बयान किया है। ‘अलायंस’ की विशेषज्ञ कैथरिना उटरमॉल ने जर्मनी में बढ़ रही महंगाई बीते तीन दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुँचने की ओर ध्यान आकर्षित किया है और यह घटक भी अर्थव्यवस्था के लिए रुख तय करनेवाला साबित हो सकता है, इस बात का अहसास भी कराया।
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