‘आर्टिफिशल इंटेलिजन्स’ के कारण इंटरनेट पर दुष्प्रचार, सेन्सॉरशिप और निगरानी की मात्रा बढ़ी

- ‘फ्रिडम हाऊस’ की रपट में चेतावनी

वॉशिंग्टन – ‘आर्टिफिशल इंटेलिजन्स’ (एआई) पर नियंत्रण रखने के लिए नियामक यंत्रणा और फ्रेमवर्क की हो रही मांग के बीच में अब इससे होने वाले खतरे को लेकर नई नई रपट सामने आ रही हैं। ‘एआई’ प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल इंटरनेट पर दुष्प्रचार, सेन्सॉरशिप और निगरानी करने के लिए काफी हो रहा हैं। यह बात बुनियादी स्वतंत्रता के लिए खतरा होने की चेतावनी अमरिकी गुट की रपट से दी गई है। आर्टिफिशल इंटेलिजन्स की प्रगति का इस्तेमाल ‘डिजिटल दमान’ के लिए हो रहा हैं, ऐसी चेतावनी भी इस रपट में है।

‘आर्टिफिशल इंटेलिजन्स’

अमरीका के ‘फ्रिडम हाऊस’ नामक गुट ने ‘फ्रिडम ऑन द नेट २०२३ ः द रिप्रेसिव पॉवर ऑफ आर्टिफिशल इंटेलिजन्स’ नामक रपट जारी की है। इसमें छह मुद्दों का ज़िक्र करके ‘एआई’ का इस्तेमाल आज़ादी और मानव अधिकारों का दमन करने के लिए होने की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। आर्टिफिशल इंटेलिजन्स के कारण उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करके विश्व की कई हुकूमतें जानकारी पर नियंत्रण रखने के साथ ऑनलाईन सेन्सॉरशिप का दायरा बढ़ाने में लगे होने का अहसास इस रपट मे कराया गया है।

‘आर्टिफिशल इंटेलिजन्स’

रपट में ‘प्राइव्हसी’, ‘फ्रि एक्सप्रेशन’, ‘एक्सेस टू इन्फॉर्मेशन’, ‘ड्यू प्रोसेस’, ‘नॉनडिस्क्रिमिनेशन’ और ‘असोसिएशन ॲण्ड असेंब्ली’ जैसे छह मुद्दों के माध्यम से ‘एआई’ का इस्तेमाल कैसे होता हैं, यह दर्शाया गया है। ‘बिग डाटा सर्विलन्स सिस्टिम’ में एआई का इस्तेमाल बढ़ने से लोगों की निजी जानकारी के साथ अधिकारों का भी उल्लंघन हो रहा है। ‘ऑटोमेटेड सिस्टिम्स’ की सहायता से राजनीतिक और सामाजिक भूमिकाओं पर सेन्सॉरशिप थोपी जाती है। ‘प्लैटफॉर्म अल्गोरिदम्स’ का इस्तेमाल दुष्प्रचार के लिए किया जा रहा है।

एआई का इस्तेमाल कर रहे ‘सर्विलन्स टूल्स’ हर एक को संदिग्ध करार देकर कार्रवाई करने की छूट दे रहे हैं। वहीं, अल्गोरिदमिक सिस्टिम्स में जमा हो रही जानकारी का इस्तेमाल भेदपूर्ण बर्ताव करने के लिए होने की बात सामने आयी हैं। आर्टिफिशल इंटेलिजन्स का इस्तेमाल होने वाले ‘फेशिअल रेकग्निशन’ यंत्रणा का इस्तेमाल सरकार विरोधी गुट और लोगों को रोकने के लिए होता है, यह दावा भी फ्रिडम हाउस की रपट में किया गया है।

‘आर्टिफिशल इंटेलिजन्स’

पिछले कुछ सालों में आर्टिफिशल इंटेलिजन्स (एआई) प्रौद्योगिकी के मुद्दे पर बड़ी चर्चा हो रही हैं। एक ओर इस प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कई क्षेत्रों में समस्या और मुश्किले हटने के दावे किए जा रहे हैं। वहीं, दुसरी ओर इस प्रौद्योगिकी की प्रगति पर किसी का भी नियंत्रण नहीं रहेगा, इस संभावना पर ध्यान आकर्षित करके इससे होने वाले खतरों को लेकर आगाह किया जा रहा है।

कुछ दिन पहले अमरिकी साइबर सुरक्षा कंपनी ‘चेक पॉईंट रिसर्च’ ने जारी की हुई रपट में साइबर हमलों के लिए किए जा रहे ‘एआई’ के इस्तेमाल का मुद्दा रेखांकित किया गया था। चैट-जीपीटी’ जैसे ‘जनरेटिव एआई’ का इस्तेमाल अनुसंधान के साथ ही साइबर हमला करने वाले हैकर्स भी करने लगे हैं, इसका अहसास अमरिकी कंपनी ने जारी रपट में दिया था।

इसी बीच, मार्च महीने में अमरीका स्थित ‘फ्युचर ऑफ लाइफ इन्स्टीट्यूट’ नामक अभ्यास गुट ने आर्टिफिशल इंटेजिलन्स क्षेत्र के खतरों को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए खुला खत लिखा था। गोल्डमन सैक्स कंपनी ने इसी बीच यह चेतावनी दी है कि, ‘एआई’ प्रौद्योगिकी के कारण ३० करोड़ लोगों पर नौकरी खोने का संकट टूट सकता हैं।

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