कर्ज़ का बढ़ता भार कम करने की कोशिश में चीनी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचने की संभावना

बीजिंग – कितनी भी बड़ी कीमत चुकाकर ‘ग्रोथ’ यानी विकास करने की नीति चीन ने बीते कुछ दशकों से अपनाई थी। इस वजह से पूरे विश्‍व की आँखों को चौंकानेवाली आर्थिक प्रगति करके चीन ने दिखाई है। लेकिन, इसके लिए चीन को प्रचंड़ मात्रा में कर्ज़ उठाना पड़ा है और अब इस कर्ज़ का भार संभालना चीन की क्षमता से बाहर जा पहुँचा है। इसी कारण राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने अर्थव्यवस्था की प्रगति को अनदेखा करके चीन के लिए भारी पड़ रहा कर्ज़ का भार कम करने की गतिविधियाँ शुरू की हैं। चीनी अर्थव्यवस्था की गिरावट के स्वरूप में इसके नतीज़े सामने आ रहे हैं, ऐसा आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं।

कर्जाचे ओझे, चीनी अर्थव्यवस्था, कर्ज़ का बढ़ता भार

चीन के निजी क्षेत्र पर फिलहाल २७ ट्रिलियन डॉलर्स कर्ज़ का भार है और जीडीपी की तुलना में इसकी मात्रा तकरीबन १६० प्रतिशत है। बीते वर्ष से चीन के संपत्ति और निर्माण क्षेत्र की शीर्ष ‘एवरग्रैण्ड’ कंपनी के शेअर्स के मूल्यों में ८० प्रतिशत से अधिक गिरावट आई है। इस कंपनी पर कुल ३०५ अरब डॉलर्स का कर्ज़ है और इसका भुगतान करने के लिए कंपनी सक्षम नहीं है। कंपनी ने इस कर्ज़ के लगातार तीन किश्‍तों का भुगतान नहीं किया है। इसका असर अन्य कंपनियों पर भी पड़ता हुआ दिखाई देने लगा है और कई कंपनियों ने कर्ज़ और किश्तें बकाया होने के संकेत दिए हैं।

चीन की पांच हज़ार से अधिक निजि कंपनियों में से ५८ कंपनियों पर कर्ज़ का भार बहुत बड़ा है और इनमें से ४५ प्रतिशत कंपनियाँ निर्माण कार्य एवं रियल इस्टेट क्षेत्र की है। ‘एस ऐण्ड पी’ वित्त संस्था की रपट में यह जानकारी साझा की गई है। चीन के निर्माण एवं रियल एस्टेट क्षेत्र पर फिलहाल पांच ट्रिलियन डॉलर्स कर्ज़ का बड़ा भार होने की बात कही जा रही है। वर्ष २००८-०९ की वैश्‍विक मंदी की पृष्ठभूमि पर चीन की हुकूमत ने बड़ी मात्रा में और अनियंत्रित तरीके से प्रदान किया हुआ कर्ज़ इसके पीछे का एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है।

कर्जाचे ओझे, चीनी अर्थव्यवस्था, कर्ज़ का बढ़ता भार

आसानी से उपलब्ध होने वाले कर्ज़ की वजह से चीन में रियल इस्टेट समेत अन्य क्षेत्रों ने एक के बाद एक नए कर्ज़ उठाकर नए-नए प्रकल्पों का निर्माण शुरू किया। लगभग एक दशक तक चीन की हुकूमत ने इसको बढ़ावा देने की नीति अपनाना जारी रखा था। लेकिन, बीते वर्ष से राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने बेकाबू हो रहे कर्ज़ का भार कम करने के लिए आवश्‍यक कदम उठाए है। इसके लिए तकनीक, निजी शिक्षा, रियल एस्टेट, लक्ज़री ब्रैण्डस्‌ के क्षेत्रों को अलग-अलग तरीके से लक्ष्य किया जा रहा है।

तकनीक के क्षेत्र के विदेशों में जारी होनेवाले ‘आयपीओ’ को रोकना, निजी शिक्षा एवं इससे संबंधित ऐप्स पर लगाए प्रतिबंध, लक्ज़री ब्रैण्डस्‌ एवं संबंधित कलाकारों को दी गई चेतावनी एवं रियल एस्टेट क्षेत्र पर कसी गई लगाम, इसी के चरण समझे जाते हैं। कुछ दिन पहले चीन ने देश की प्रमुख बैंकों ने प्रदान किए कर्ज़ एवं उससे जुड़े कारोबार का जायज़ा लेना शुरू किया। रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियों के कर्ज़ डूबने देना एवं विकल्प के तौर पर उन्हें दिवालिया घोषित करना भी कर्ज़ का बढ़ता भार रोकने की गतिविधियों का हिस्सा माना जा रहा है।

‘यूरोप एवं अमरीका की तरह वित्तीय बाजार टूटना एवं अगला घटनाक्रम दोहराने से चीन को बचना है। चीन की हुकूमत को कोई भी कीमत चुकाकर आर्थिक विकास नहीं करना है’, यह दावा ‘आयएनजी’ नामक वित्तसंस्था के वरिष्ठ अधिकारी रॉबर्ट कार्नेल ने किया है। ‘एवरग्रैण्ड’ का संकट चीन की कम्युनिस्ट हुककूमत की सफाई अभियान का हिस्सा हो सकता है, इस ओर भी कार्नेल ने ध्यान आकर्षित किया।

चीन अब तक भारी मात्रा में अपना निधि खर्च करके आर्थिक विकास दर की गति बढ़ाने की या बरकरार रखने की कोशिश कर रहा था। लेकिन, कर्ज़ का बढ़ता भार और इससे हो रहे नुकसान के कारण यह मॉडेल आगे बरकरार रहेगा, इसका भरोसा चीन की हुकूमत को नहीं रहा। इस वजह से राजनीतिक एवं आर्थिक दोनों स्तरों पर झटके लगने के बावजूद चीन के राष्ट्राध्यक्ष ने निजी क्षेत्र पर कार्रवाई करने के साथ रियल इस्टेट का संकट रोकने की गतिविधियाँ नहीं की हैं, ऐसे संकेत प्रसार माध्यम एवं विश्‍लेषक दे रहे हैं।

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